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२९२. पत्र : अली बन्धुओंको
साबरमती
९ अगस्त, १९२४
प्रिय भाइयो,
मुझे आप दोनोंके तार मिले। मुझे नहीं मालूम कि आप कहाँ हैं। अगर बी-अम्मा कहीं पास ही हों तो उन्हें मेरा आदाब कहें । उनसे कह दीजिए कि अगर ईश्वर उन्हें उठा लेता है तो मुझे कोई दुःख नहीं होगा । जितने गौरव और सन्तोषके साथ वे शरीर-त्याग कर सकती हैं, उतने गौरव और सन्तोषके साथ और कोई माता शरीर त्याग नहीं कर सकती । दुःख उनके लिए होगा जो पीछे रह जायेंगे । हम अपने वृद्धसे वृद्ध कुटुम्बीका भी संसारसे उठ जाना पसन्द नहीं करते और माताके बारेमें तो हम यही चाहते हैं कि वह सदा हमारे साथ रहे । ईश्वरकी इच्छा कुछ और होती है । किन्तु शरीरका अन्त हो जानेपर भी आत्माका अस्तित्व सदा बना रहता है । इसलिए आप चिन्ता न करें-- ईश्वर उन्हें हमारे साथ कुछ दिन और रहने दे तो ठीक और न रहने दे तो भी ठीक ।
आपका,
मो० क० गांधी
मौलाना शौकत अली
और मुहम्मद अली
[ अंग्रेजीसे ]
और मुहम्मद अली
[ अंग्रेजीसे ]
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
- सौजन्य : नारायण देसाई