में चरखेको सर्वोपरि यन्त्र बता रहा हूँ । 'हिन्द स्वराज्य' में आदर्श स्थितिका चित्र खींचा गया है। मैं उसकी जिन-जिन बातोंका पालन नहीं कर रहा हूँ उतनी हृद तक इसे मेरी कमजोरी समझना चाहिए। मैं अहिंसाको परम धर्म मानता हूँ। फिर भी खाने-पीने आदिमें कुछ-न-कुछ हिंसा तो हो ही जाती हैं। मैं अहिंसाका आदर्श अपने सामने रखकर अपनी दिनचर्या में संयमके पालनका प्रयत्न अवश्य करता हूँ । मैं हिंसा की प्रवृत्तिको बढ़ानेका नहीं, बल्कि घटानेका प्रयत्न करता हूँ ।
मैंने अस्पतालोंके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है वह भी यथार्थ है ।फिर भी जब-तक मुझे शरीरका मोह है तबतक दवा सेवन करता हूँ । हाँ, यह जरूर चाहता हूँ कि मेरा यह मोह कम हो। मैं अस्पतालमें[१] कैदीकी हैसियतसे गया था। छूट जानेपर[२] मुझे वहाँसे तुरन्त भाग खड़े होने की जरूरत नहीं दिखाई दी। जिन लोगोंने इतनी विनय और दयामायाका परिचय दिया था मुझे उनकी देख-रेख में रहना धर्म दिखाई दिया । मैंने अस्पतालमें अपने व्रतोंका पालन किया है। यदि अधिकारी मुझे वहाँ न ले जाते तो मैं उदास न होता । मैं अस्पतालमें अपनी खुशीसे नहीं गया था । मैंने वहाँ ले जाये जानेके प्रस्तावका विरोध भी नहीं किया । मैंने विदेशी चीनी न खानेका व्रत नहीं लिया है, परन्तु मैं विदेशी चीनी नहीं खाता। मुझे चीनी खाना ही नापसन्द है । मैंने पिछली बीमारी में ही चीनी खाना शुरू किया था, परन्तु वह भी स्वदेशी ही । मैंने दवाएँ भी वे ही ली हैं, जिनके खानेसे मेरे व्रतमें बाधा न पड़े ।
फिर भी मेरी यह बात सच है कि मेरी यह बीमारी मेरी तात्विक कल्पनाओंके खिलाफ थी, जो मेरे लिए शर्मकी बात है । मेरी दृष्टिमें किसी किस्म की दवा लेना हीनता है । मैं अस्पतालमें जाने लायक बीमार हो जाऊँ, यह तो उससे भी बड़ी हीनता है । लेखक और पाठक मुझे मेरी इन कमजोरियोंके कारण दया-दृष्टि से देखें, निवाहें और ऐसा आशीर्वाद दें कि मैं इन उपाधियोंसे मुक्त होकर बिलकुल निर्विकार हो जाऊँ और जबतक उनका यह आशीर्वाद फलीभूत न हो तबतक मुझे, मैं जैसा हूँ वैसा ही निबाहें और सहन करें।
मैं चोरों और डाकुओंको सजा देना या मार डालना ठीक नहीं मानता। मैंने तो उन्हें भी प्रेमसे जीतना पसन्द किया है। परन्तु जो लोग इस प्रेम-धर्मका पालन न कर सकें, जिनके पास इतनी प्रेमकी पूंजी भी न हो और अपने आश्रितों तथा धन-धान्यकी रक्षा करना चाहें, उन्हें लुटेरोंको मारकर भी आत्मरक्षा करनेका अधिकार है।
अंग्रेजोंकी डाकुओंसे तुलना करना विचार-दोषका जबरदस्त उदाहरण है। लुटेरे बलपूर्वक लूटते हैं, अंग्रेज बहका-फुसलाकर लूटते हैं । दोनोंकी लूटकी पद्धति में अन्तर है। शराबका ठकेदार भी शराब बेचकर मेरे धन और मेरी आत्माको लूटता है । मैं लोगोंको क्या सिखाऊँ -- उसे मारना या उसका त्याग करना ? परन्तु यदि कोई अंग्रेज किसीके शरीरपर प्रहार करे अथवा कोई शराबका ठेकेदार दूसरेको जबरन शराब पिलाये और पीड़ित व्यक्ति उन्हें प्रेमसे जीतनेमें असमर्थ हो तो वह निस्सन्देह हिंसा-