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३०१. पत्र : लाला बुलाकीरामको

साबरमती
१० अगस्त, १९२४

प्रिय मित्र,

अमीरको[१] कोई सन्देश भेजनेकी मेरी इच्छा नहीं है। मैं चाहता हूँ कि मेरा काम ही बोले । कोई भेंट भेजना भी जरूरी नहीं समझता । मेरे काते सूतसे अलग थान तैयार नहीं किया गया है ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ पुनश्च : ]

मुझे अभी-अभी आपका दूसरा पत्र मिला है। उन्होंने इस्तीफा दे दिया, उनका यह काम मुझे तो पसन्द आया, ऐसा कह सकता हूँ। हम सत्यका अनुसरण कर रहे हैं । सत्याग्रह आवेश नहीं है । वह स्थिरचित्तसे किये गये संकल्पके बाद किया जाता है; मैं अनिश्चित कालतक प्रतीक्षा करूँगा ।

मो० क० गांधी

लाला बुलाकीराम
भास्कर प्रेस, ५ कचहरी रोड
देहरादून
[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. १. अफगानिस्तानके ।