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३०२. पत्र : डा० आर० काणेको

साबरमती
१० अगस्त, १९२४

प्रिय मित्र,

आपके पत्रके लिए धन्यवाद ।
(१) मैं अनिवार्य शिक्षा के विरुद्ध हूँ । अनिवार्यता अन्यायपूर्ण हो सकती है । वह अनावश्यक तो है ही ।
(२) यदि हमें आज ही स्वराज्य मिल जाये तो मैं प्राथमिक या किसी भी स्तरकी शिक्षाको अनिवार्य बनानेके हर प्रयत्नका विरोध करूँगा । हमने अभीतक स्वेच्छिक प्रणालीकी आजमाइश नहीं की है।
(३) यदि यवतमाल नगरपालिका अनिवार्य शिक्षाका तरीका अपनाती है तो उसका यह कदम कांग्रेस प्रस्तावकी शर्तोंके अन्तर्गत ही कहलाएगा। किन्तु यदि इस सम्बन्धमें कोई मेरी सुने तो मैं नगरपालिकाके सदस्योंसे इस बातकी वकालत करूँगा कि शिक्षाको अनिवार्य बनाने के पहले स्वेच्छापूर्वक शिक्षा लेनेके सभी प्रयत्नोंको कर देखें । जहाँ कहीं अनिवार्य शिक्षा लागू की गई है वहाँ मैंने उससे होनेवाले दुष्परिणामको देखा है ।

हृदयसे आपका
मो० क० गांधी

श्री आर० काणे
सदस्य, विधान परिषद्य
वतमाल
[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से ।
सौजन्य : नारायण देसाई