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३०५. पत्र : चित्तरंजन दासको

साबरमती
१० अगस्त, १९२४

प्रिय मित्र,

जो पत्र में साथ भेज रहा हूँ वह मुझे श्री खोपकरके एक मित्रसे मिला है। इनके कथनानुसार श्री खोपकरका खयाल है कि उस कागजपर आपके हस्ताक्षर नहीं होने चाहिए थे। किन्तु यदि आपके हस्ताक्षर हो गये हों तो वह सज्जन कहते हैं कि जिस ढंगसे आपको सन्तोष हो, उस ढंगसे वे अपनी निर्दोषिता प्रमाणित करनेको तैयार हैं । कृपया सूचित करें कि श्री खोपकरके इन मित्रसे मैं क्या कहूँ ।

आशा है आप और श्रीमती दास स्वस्थ होंगे ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री चितरंजन दास
कलकत्ता
[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३०६. पत्र : जमनालाल बजाजको

श्रावण सुदी १० [ १० अगस्त, १९२४ ][१]

चि० जमनालाल,

मोतीलालजीको मैंने जो पत्र लिखा है; उसे पढ़ लेना । मैंने कृष्णदाससे उसकी एक नकल तुम्हें भेज देनेके लिए कहा है। गोविन्द बाबू उड़ीसामें काम कर रहे हैं । उनके कामकी जाँच करना और यदि तुम्हें ठीक लगे तो उन्हें गांधी सेवा संघ कोषमें से आर्थिक सहायता देना। उनकी योग्यता कम है, माँग ज्यादा अर्थात् प्रति-मास २०० रुपये है। इतना तो अवश्य ही नहीं दिया जा सकता। यदि वे तुम्हारी कसौटीमें खरे उतरें तो उन्हें ५० रुपये मासिकतक देना । जाँच सावधानीसे करना ।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र ( जी० एन० २८४८) की फोटो-नकलसे ।

२४-३६
  1. १. यह तारीख पाँचवें पुत्रको बापूके आशीर्वाद नामक पुस्तकके अनुसार दी गई है।