३०७. पत्र : वसुमती पण्डितको
श्रावण सुदी १० [१० अगस्त, १९२४ ][१]
तुम्हारा पत्र मिला । मेरा वजन तो जरूर कम हुआ है, लेकिन यों तबीयत अच्छी है । 'नवजीवन' में मलाबारसे सम्बन्धित पंक्तियाँ पढ़ जाना और वहाँसे जो-कुछ किया जा सके सो करना ।
उम्मीद है तुम घूमने बराबर जाती होगी। पत्रमें काटा-कूटी हो जानेकी तनिक भी चिन्ता न करना । आज हरिभाई यहाँ आये हुए हैं।
बापूके आशीर्वाद
काले फ्रान्सीसी बेर (प्लम) आते हैं, उन्हें भिगोकर खानेकी आदत डालना । तुम्हारा दूसरा कार्ड अभी ही मिला है। मैं बहुत करके यहाँ रहूँगा । अवश्य ही जल्दी आ जाना ।
बापू
मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ९२०४) की फोटो नकल तथा सी० डब्ल्यू० ४५३ से ।
- सौजन्य : वसुमती पण्डित
३०८. पत्र : वा० गो० देसाईको
श्रावण सुदी १० [१० अगस्त, १९२४ ][२]
मैंने तो शिमला सम्बन्धी लेख प्रकाशित करनेके लिए प्रेसमें भेज दिया था; इसलिए आपके पास भेजना मेरा काम न था । लेकिन आप और स्वामी तो मित्र-मित्र ठहरे। इसलिए स्वामी तो मनमानी छूट लेंगे ही। आपने यह लेख इतने छोटे-छोटे अक्षरोंमें और इतना घना लिखा था कि पढ़नेमें दिक्कत होती थी, जान