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पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

पड़ता है कि इसी कारण स्वामीने उसे आपको वापस भेजा था। आप उसे फिरसे लिख डालें ।

इन साप्ताहिक पत्रोंको चलाना ही मेरे शिमला आने में एकमात्र कठिनाई नहीं है ।

मैं आपको आनन्दशंकर भाईका पत्र भेज ही रहा था; परन्तु कुछ सोचकर रुक गया। मैंने तो आपके संशोधनको ठीक माना है और उसे ज्योंका-त्यों रहने दिया है। लेकिन मैंने आपको आनन्दशंकर भाईका पत्र यह विचारकर नहीं भेजा कि उसे भेजना कहीं मेरे अभिमानका सूचक न हो। विनोदपूर्ण पत्र लिखनेका समय न था ।

मैंने 'लायक' और 'दायक' के अन्तरको पहले ही स्पष्ट कर ही दिया है । सरदार मंगलसिंहको पत्र लिख रहा हूँ। सभी सिख सीधे-सादे और विनम्र होते हैं। यदि वे वहाँ न हों तो यह पत्र किसी भी अकाली सिखको दे दें ।

मोहनदास

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०२४) की फोटो-नकलसे ।
सौजन्य : वा० गो० देसाई

३०९. घनश्यामदास बिड़लाको

श्रावण सुदी १० [१० अगस्त, १९२४][१]

श्री घनश्यामदास जी,

आपके सब पत्र मीले हैं। मुझको उनसे बहोत सहाय मीलती है ।

सरोजीनी के विषय में जो मैं मानता हूँ उसको न लीखना भी कठिन है। क्या कार्य किनसे ले सकते हैं उसका निश्चय जनताको कर लेना हि चाहिये । एक व्यक्तिकी एक कार्य में मैं प्रशंसा करूं उससे कोई ऐसा क्यों समझे कि वह सम्पूर्ण व्यक्ति है ? मैं इतना लीखता हुआ भी चाहता हूँ कि आपके दिलमें जो बात आवे आप लीखते रहें ।

मैं जानता हूं कि हि० मु० प्रश्न में मालवीजी मेरी राय पसंद नहि करते हैं । तदापि मेरा विश्वास है कि हमारे नजदीक दूसरा कोई फसला नहि है । हां थोडे दिनों कि लिये हम कृत्रिम ऐक्य पेदा कर सकें। उससे हमारी उन्नति नहीं हो सकती है ।

सुन्दरलालजी के विषयमें मैं आपको कुछ सलाह नहि दे सकता हूँ । हां, इस बात में जानता हूँ कि जमनालालजीने जिस शर्तसे उन्होंने सहाय मांगी नहि दी। मेरे मुकाबले में जमनालालजी उनको बहोत ज्यादा पहचानते हैं। आप जो कुछ करें इस बारेमें जमनालालजीकी राय ले लें ।

  1. १. सम्भवतः यह पत्र “बम्बई सरोजनीको याद रखे ", ३ जुलाई, १९२४ के बाद लिखा गया था। १९२४ में श्रावण सुदी १०, १० अगस्तको पड़ी थी । देखिए “पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको”, ३ जुलाई १९२४ के पश्चात् ।