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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपने दो महीनेका दान जमनालालजीके वहां भेज देनेका लीखा उस लीये आपका अनुग्रह मानता हूं । उसीके आधारपर मैंने दक्षिणमें हिन्दी प्रचारके लीये और दूसरी दो संस्थाके लीये कुछ प्रबंधकी बात जमनालालजीसे की है । उस द्रव्यका व्यय उन्हीं के हाथसे होता है ।

आपका
मोहनदास

मूल पत्र ( सी० डब्ल्यू ० ६०२३) से ।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

३१०. पत्र : शौकत अलीको

साबरमती
११ अगस्त, १९२४

प्यारे भाई,

आपके दोनों पत्र मिल गये। बी अम्माकी खबर पढ़कर बड़ा दुःखी हुआ ।

तुमन जो अनुमति माँगी है, उम्मीद है मिल जायेगी । हम अपने देशमें ही निर्वासितोंकी तरह रहें और फिर भी स्वराज्यके साथ खिलवाड़ होता रहे यह कैसी विडम्बना है ।

मेरा स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण मैंने विट्ठलभाईको इस बात के लिए राजी कर लिया है कि बम्बई नगर निगम द्वारा मुझे दिया जानेवाला अभिनन्दन-पत्र[१] ३० अगस्तको दिया जाये। इसलिए अगर कोई खास बात न हुई तो मेरा प्रस्ताव है कि हम लोग सितम्बर के प्रारम्भमें दौरा शुरू करें। लेकिन मैंने मुहम्मद अलीको पत्र लिखकर सूचित कर दिया है कि यदि वे चाहें तो अब मेरा दिल्ली जाना सम्भव है । देखना है कि में सफर और कामका यह बोझ सँभाल भी सकता हूँ या नहीं । यदि उन्हें मेरी जरूरत न भी हो तो भी मेरा खयाल है कि हमें काम दिल्लीसे शुरू करना चाहिए। मालूम हुआ है कि मुहर्रम १२ अगस्तको है । यह दिन हमारे लिए एक और चिन्ताका दिवस होगा । में नहीं जानता कि उस दिन हम सब कहाँ होंगे। इन सब बातोंपर विचार करके तय कीजिये कि हमें उस दिन कहाँ होना चाहिए ।

मैं खिलाफत सम्बन्धी काममें आपकी अपनी कठिनाइयोंसे परिचित हूँ । मेरा खयाल है कि हमारी समझमें यह बात आ जायेगी कि संख्याकी अधिकताके बजाय हमें कम संख्या में ही क्यों न हो अच्छे कार्यकर्त्ताओंपर भरोसा रखना होगा। यह बात स्वराज्य आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन दोनोंपर समान रूपसे लागू होती है ।

अध्यक्ष के चुनाव के सम्बन्धमें मुझे जो कुछ कहना था, मैं कह चुका हूँ। इस सम्बन्धमें लोगों में इतना जोश है कि लगता है, यदि किसीको बहुमत पानेके लिए

  1. १. देखिए " पत्र : विट्ठलभाई झ० पटेलको ", १७-५-१९२४ ।