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पत्र : स्वामी आनन्दानन्दको

संघर्ष करना आवश्यक हुआ तो ईमानदारी बनाये रखकर काम कर सकना लगभग असम्भव हो जायेगा । यदि बहुमतको थोड़ा-बहुत भी उपयोगी होना है तो उसका आसानीसे प्राप्त होना आवश्यक है । बहुमत प्राप्त करनेका यह पश्चिमी तरीका में बहुत ही नापसन्द करता हूँ ।

मैं खिलाफत सम्बन्धी समाचारोंको पढ़ने की कोशिश करूँगा ।

सस्नेह,

आपका,
मो० क० गांधी

मौलाना शौकत अली
बम्बई
[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से ।
सौजन्य : नारायण देसाई

३११. पत्र : स्वामी आनन्दानन्दको

सोमवार [११ अगस्त, १९२४ ][१]

भाईश्री आनन्दानन्द,

आपका पत्र मिला। परिशिष्टांक प्रकाशित करते रहें। मैं आठ गेली सामग्री नियमित रूपसे दूंगा। मुझे इसका एक रास्ता कल मिल गया है । सब लिखी हुई सामग्री जब खत्म हो जायेगी, तब क्या करना चाहिए, यह देखना होगा । तबकी बात तब सोचेंगे । 'नवजीवन' की सामग्री कितने कालम तैयार है इस बारेमें भी आपको तार दूँगा । मुझसे अनुमानमें गलती हो सकती है; किन्तु सावधानी रखूंगा ।

मैं यह बात भी अच्छी तरह समझता हूँ कि हमें व्यावसायिक पक्षपर भी ध्यान देना ही होगा। इसपर पूरा आग्रह रखना आपका काम है । मैं अन्य पक्षोंका विचार करते हुए उतावली में कुछ भटक भले ही जाऊँ; परन्तु अन्तमें सीधे मार्गपर आ जाऊँगा, क्योंकि में सत्याग्रही तो हूँ ही और सदा रहूँगा भी ।

'सत्याग्रहका इतिहास' की अंग्रेजीके बारेमें मुझे वालजीका दृष्टिकोण ठीक नहीं जान पड़ता । हमें तो गुजराती संस्करणको अच्छा बनाना है । अंग्रेजी संस्करणका बीड़ा तो मद्रासने उठा लिया है; इसलिए हम उसमें हस्तक्षेप कदापि न करेंगे । गणेशन सीधे और सच्चे व्यक्ति हैं। पैसा उनका परमेश्वर नहीं है। उनका साहस

  1. १. इस पत्र में गणेशनके उल्लेखसे मालूम होता है कि गांधीजीने यह पत्र सम्भवतः उसी दिन लिखा था जिस दिन वालजी देसाईको पत्र लिखा था। देखिए अगला शीर्षक ।