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३१३. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

श्रावण सुदी ११ [ ११ अगस्त, १९२४ ][१]

भाईश्री घनश्यामदास,

आपका पत्र मीला है। मी० आयरके पत्रका कुछ असर मेरेपर नहीं पड़ा क्योंकि हिंदु धर्मको बचानेका रास्ता हि मैं दूसरा समझता हूँ। अखबार नीकालनेसे भी कुछ लाभ होगा ऐसा मैं नहि मानता हूं। पंजाब में आजतक हम लोगोंने मुसलमानोंको मोका हि नहि दया है। मी० दास दूसरा कर हि नहिं सकते थे। उन्होंने पेक्ट बनाया। मौकेपर वही कैसे तोड सकते थे ? दिल्ली जाते हुए मुझको कोई रोकते नहि है । सप्टेम्बर में तो ऐसे भी मैं वहां पहोंचने की उमीद रखता हूँ ।

आप मुझे सब हाल लीखते रहें और कुछ पढने के लायक वस्तु हो भेजते रहें ।

आपका
मोहनदास

[ पुनश्च : ]

मी० आयरका खत वापिस भेजता हूं । आज मुझको रु० १०,००० मील गये हैं। कल आपको एक खत हरिद्वार के ठिकानेपर भेजा गया ।

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू ० ६०२५) से ।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला
  1. १. गांधीजीकी दिल्ली-यात्रा के उल्लेखसे पता चलता है कि यह पत्र १९२४ में लिखा गया था । गांधीजी १९२४ में पहले अगस्त में और फिर सितम्बर में दिल्ली गये थे। उस वर्षं श्रावण सुदी ११, ११ अगस्त की थी ।