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३१८. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश[१]

१३ अगस्त, १९२४

मेरा यह दृढ़ मत है कि प्रत्येक बात के सम्बन्धमें मुझसे आदेश माँगना गलत है और खतरनाक भी । प्रश्न जिस ढंगसे पूछा जायेगा मेरा उत्तर भी उसी ढंगका होगा । इस प्रकार उत्तर देने में मुझसे भूल भी हो सकती है । प्रत्येक व्यक्तिको चाहिए कि सिद्धान्तों में से उपसिद्धान्त वह स्वयं निकाल ले ।

[ गुजरातीसे ]
बापुनी प्रसादी,

३१९. पत्र : तेजके सम्पादकको

श्रावण सुदी १३ [ १३ अगस्त, १९२४ ]

भाई गुप्त,

मैंने उसी कृष्णको प्रतिदिन कोटीशः प्रणाम करता हूं जो गीताका प्रणेता है, जो १६,००० इंद्रियोंका स्वामी है, जो अखंड ब्रह्मचारी है, जो निर्विकारी है, जो हमारे हृदयका अधिष्ठाता है — दूसरेको नहीं ।

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
  1. १. शेरिफकी सभा में सम्मिलित होनेके बारेमें गांधीजीने सरोजिनी नायडूके तारका जो उत्तर दिया था उसपर प्रेषी द्वारा किये गये प्रश्नके जवाब में भेजा गया था। देखिए “तार : सरोजिनी नायडूको ", १२-८-१९२४ था उसके पश्चात् ।