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३२०. पत्र : इन्द्र विद्यावाचस्पतिको

श्रावण सुदी १३ [ १३ अगस्त, १९२४][१]

चि० इन्द्र,

' इस समय प्रत्येक उत्सवपर मैं तो एक हि प्रार्थना करता हूं । हे ईश्वर, हिंदू और मुसलमान दोनों के हृदयको पलटा दे। उसमें से शहर नीकाल दे । प्रेम भर दे। सबको समझा दे देशके गरीबोंके लिये वे सूत कातें । हिदुके दिलोंको साफ कर और अस्पृश्यताका नाश कर ।' और क्या भेजूं ? मेरी उमेद है तुमारा प्रयत्न सफल होगा ।

मोहनदासके आशीर्वाद

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ४८६०) से ।
सौजन्य : चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

३२१. उचित प्रश्न

एक पत्रलेखक पूछता है :

क्या आप भारत में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षाप्रणाली लागू करनेके पक्ष में हैं ? क्या शिक्षाको अनिवार्य बनाना अनुचित या अनावश्यक है? यदि हम देश की वर्तमान अवस्था में स्वराज्य प्राप्त कर लेते हैं तो क्या आप भारत भर में प्राथमिक शिक्षाको अनिवार्य बना देंगे ?

मेरी समझ में तो उनके मुख्य प्रश्नका मेरा उत्तर निश्चित रूपसे नकारात्मक ही होगा। यह मैं निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि मैं हर हालत में अनिवार्य शिक्षा-का विरोध नहीं करूँगा । मेरी दृष्टिमें सभी प्रकारकी अनिवार्यता घृणित है। जिस प्रकार मैं यह नहीं चाहता कि जबरदस्ती करके किसीको शराब पीनेसे रोका जाये, उसी प्रकार मैं यह भी नहीं चाहता कि राष्ट्रको जबरदस्ती करके शिक्षण दिया जाये । किन्तु मैं जिस प्रकार शराब की दूकान खोलने से इनकार करके तथा वर्तमान शराबकी दूकानोंको बन्द करके लोगोंको शराब पीनेसे विमुख करना चाहता हूँ, उसी प्रकार मैं रास्ते में आनेवाली रुकावटोंको हटाकर निःशुल्क स्कूल खोलकर और उन्हें जनताकी आवश्यकताको पूरा करने योग्य बनाकर लोगोंको शिक्षा ग्रहण करनेकी दिशा में उन्मुख करना चाहता हूँ । किन्तु अभीतक तो बड़े पैमानेपर निःशुल्क शिक्षाका प्रयोग करने का भी प्रयत्न नहीं किया गया है । हमने माता-पिताओंको कोई प्रेरणा नहीं दी

  1. १. डाकखानेकी मुहरसे ।