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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है, हमने साक्षरताके महत्त्वका पर्याप्त परिमाणमें या थोड़ा भी प्रचार नहीं किया है । पढ़ाने के लिए हमने योग्य अध्यापक भी तैयार नहीं किये हैं । इसलिए मेरे विचार-से अभी अनिवार्य शिक्षाके बारेमें विचार करना सर्वथा असामयिक है । मैं यह भी नहीं मानता कि जहाँ-कहीं अनिवार्य शिक्षाका प्रयोग किया भी गया, उन सभी जगहों में वह सफल हुआ है । यदि अधिकांश जनता शिक्षा चाहती है तो उसे अनिवार्य बनाना बिलकुल ही अनावश्यक है। यदि अधिकांश जनता उसे नहीं चाहती है तो उसे अनिवार्य बनाना अत्यधिक हानिकारक ठहरेगा । बहुसंख्यक जनताका विरोध रहते हुए केवल तानाशाह सरकार ही तद्विषयक कानून पास करती है । क्या सरकारने बहु-संख्यक लोगों के बच्चोंकी शिक्षा के लिए पूरी सुविधाएँ मुहैया कर रखी हैं? हम गत १०० या उससे भी अधिक वर्षोंसे अनिवार्य नियमोंमें जकड़े हैं। हमसे पूर्वानुमति लिये बिना राज्य हमारे जीवनके विविध अंगोंपर शासन करता है । चाहे इस समय राष्ट्र द्वारा की गई प्रार्थनाओं, याचिकाओं तथा उसके द्वारा दिये गये परामर्शोका कोई अनुकूल उत्तर न भी मिले तो भी यह समय ऐसा है कि राष्ट्रको ऐच्छिक तरीकोंका ही आदी बनाया जाना चाहिए। यह विश्वास कि ऐच्छिक प्रयत्नोंसे किसी प्रकारका सुधार सम्भव नहीं है, समाजकी प्रगतिमें सबसे अधिक आड़े आता है । जबरदस्ती शिक्षित किये गये लोग स्वराज्य के लिए सर्वथा अनुपयुक्त हो जाते हैं ।

मैंने ऊपर जो कुछ कहा है, उसका तात्पर्य यह है कि यदि हमें आज स्वराज्य मिल जाता है तो मैं अनिवार्य शिक्षाका विरोध तबतक करता रहूँगा जबतक ऐच्छिक प्राथमिक शिक्षाके लिए ईमानदारीसे किया गया प्रत्येक प्रयत्न असफल नहीं हो जाता । पाठकोंको यह नहीं भूल जाना चाहिए कि आज भारतमें ५० वर्ष पहलेकी अपेक्षा कहीं अधिक अशिक्षा है। इसका कारण यह नहीं है कि माता-पिताओंकी शिक्षाके प्रति दिलचस्पी कम हो गई है, बल्कि यह है कि विदेशी तथा अस्वाभाविक शासनप्रणाली के अन्तर्गत देशमें जो सुविधाएँ पहले थीं, वे अब नहीं रही है । ब्रह्मदेशमें भी आज यही बात देखी जा रही है।

पत्र-लेखकका दूसरा प्रश्न है :

क्या आप इस पक्ष में हैं कि नगरपालिकाएँ तथा दूसरे स्थानीय निकाय वर्तमान अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा अधिनियमका लाभ उठाकर प्राथमिक शिक्षाको अनिवार्य कर दें; विशेषतः ऐसे समय जब यह काम सभी विचारोंके सदस्योंके हार्दिक समर्थन से सम्पन्न कराया जा सकता है ?

इस प्रश्नमें संकेत असहयोगियोंकी ओर है । मेरा विचार है यदि पार्षद ऐसा करना चाहते हैं तो अधिनियमसे लाभ उठाना कांग्रेसके प्रस्तावकी रूसे असंगत नहीं है । किन्तु मुझे इसीलिए अनिवार्यताका सीधा उपयोग करनेमें संकोच होगा । अनिवार्यताके प्रति मौलिक आपत्तिके अतिरिक्त ऐसा करना चाहिए या नहीं इसपर निर्णयात्मक विचार प्रकट करनेसे पहले मैं यह भी जानना चाहता हूँ कि (१) क्या प्राथमिक शिक्षाको निःशुल्क बनाने के प्रयत्न किये गये हैं और किये गये हैं तो उनका क्या परिणाम निकला है ? क्या सभी अभिभावकोंसे इस बारेमें बातचीत कर ली गई है और