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जोश चाहिए !

उनकी आपत्तियोंपर ध्यान दिया गया है तथा जहाँ वे उचित जान पड़ी हैं वहाँ उन्हें दूर किया गया है ? समझाने-बुझाने और प्रेरित करनेके सभी उपलब्ध साधनोंका परीक्षण किये बिना शिक्षाको अनिवार्य बनानेके लिए दौड़ पड़ना काहिली और अधीरता है। यह मानना कि बहुसंख्यक माता-पिता इतने मूर्ख या हृदयहीन हैं कि घरके सामने निःशुल्क पाठशालाएँ खोल दिये जाने के बाद भी अपने बच्चोंको शिक्षण देनेकी ओर प्रवृत्त न हों, युक्ति-संगत न होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १४-८-१९२४

३२२. जोश चाहिए !

मैं एक ऐसे वकील साहब के पत्रसे कुछ अंश यहाँ उद्धृत करता हूँ, जिन्होंने राष्ट्रीय कार्यमें बहुत कुरबानियाँ की हैं । जब उन्होंने वकालत छोड़ी तो अपनी किताबें तक बेच डाली। अब वे नाउम्मीद हो गये हैं। उन्होंने अपना यह पत्र इस तरह समाप्त किया है-- " मैंने यह खत महज इसलिए लिखा है कि मेरे मनका बोझ कुछ हलका हो जाये। यदि इसकी ओर आप ध्यान न दें तो भी मुझे निराशा न होगी ।" मैं शुद्ध भावसे लिखे गये लेखकी उपेक्षा कैसे कर सकता हूँ ? इसलिए मैंने मध्यम मार्ग स्वीकार किया है । मैंने इस पत्र से निराशात्मक और उपदेशात्मक अंश हटाकर उसका निचोड़ निकाल लिया है और ऐसे कुछ उद्धरण नीचे दिये जाते हैं, जो कि विचारणीय हैं :

चरखा, हिन्दू-मुस्लिम एकता और अछूतोद्धारकी बातें लोगोंको वो बरसोंसे नहीं जँच रही हैं; और उनके विचारोंमें परिवर्तनका कोई चिन्ह भी दिखाई नहीं देता ।

अपरिवर्तनवादियोंको अपना कार्यक्रम मानव-प्रकृतिको ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। उन्हें इस बातका बवाल रखना चाहिए कि जनतामें उत्साहका संचार करनेके लिए कोई जोशीला कार्यक्रम बहुत आवश्यक है। सत्याग्रहसे बढ़कर जोश पैदा करनेका दूसरा जरिया नहीं हो सकता। लेकिन वह सरकार से सीधी और खुली लड़ाईके रूपमें हो। हमारे अन्दर ही भिन्न-भिन्न जातियों में सत्याग्रहका प्रयोग हानिकर है। इससे तो केवल यही होता है कि सरकारकी बन आती है और वह नजरोंसे ओझल रहकर, खाईमें छिपकर हमपर अन्धेरेमें वार करती है और इससे षडयंत्र और शरारतभरे प्रचारको पनपनेका खासा मौका मिल जाता है । सरकारसे सीधी खुली मुठभेड़के लिए जोरदार मसले चुने जाने चाहिए जिनपर जनताको सहानुभूति प्राप्त की जा सके। नीचे लिखे मसले इन शर्तोंको पूरा कर सकते हैं, इनमें से कोई एक बात चुन ली जाये :