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जोश चाहिए !

न कहें तो आपको पत्थर मार-मारकर गाँव के बाहर खदेड़ देनेपर आमादा हो जायेंगे । एक ऐसा जोश है जिससे जीवन मिलता है; पर एक ऐसा जोश भी है जो हमारी 'मृत्यु' का कारण बनता है । वह क्षणिक होता है और लोगोंको अन्धा कर देता है तथा जरा देरके लिए चकाचौंध पैदा कर देता है। इस किस्म के जोशसे स्वराज्य नहीं मिल सकता । हाँ, उन लोगों के लिए इसकी उपयोगिताका अनुमान मैं कर सकता हूँ जो दूसरेके हाथोंसे सत्ता छीनने के लिए युद्ध करनेको प्रवृत्त हों । पर भारत के सामने जो समस्या दरपेश है वह इतनी सुगम नहीं है। हम न तो हथियार लेकर लड़ाई लड़नेके लिए तैयार हैं और न हमें इसका अभ्यास ही है । अंग्रेज लोग केवल भुज-बलके ही द्वारा यहाँ राज्य नहीं करते। हमें फुसलाने-बहलाने के तरीके भी उनके पास हैं । वे ऊपरी मुलायम दस्ताने में अपने घूंसेको बड़ी सावधानी के साथ छिपाकर रख सकते हैं। जिस घड़ी हम बुद्धियुक्त संगठन, शुद्ध और अविचल संकल्प तथा पूर्ण और नियमबद्ध संघशक्तिका परिचय देंगे, वे अपना पूरा शासन-तन्त्र बिना किसी संघर्ष के ही हमें सौंप देंगे और हमारी शर्तोंपर भारतकी सेवा करनेको तत्पर हो जायेंगे, ठीक उसी प्रकार जैसे हम आज अनिच्छापूर्वक, अज्ञानवश उनकी शर्तोंपर उनकी गुलामी कर रहे हैं।

सत्याग्रह इस पिछले तर्जका जोश नहीं है, बल्कि वह तो ऐसे वायु मण्डलमें मर जाता है। उसके लिए शान्त स्थिरचित्त साहसकी आवश्यकता है, जो शिकस्त नहीं जानता और बदला लेनेकी बातसे दूर रहता है । यहाँतक कि अन्तर्जातीय सत्याग्रह भी (यदि यह दर हकीकत सत्याग्रह हो तो ) राष्ट्रको सरकारके मुकाबले में लड़ाई लड़ने के लिए बल प्रदान करता है। अपरिवर्तनवादियों और परिवर्तनवादियोंके बीच जो यह अशोभनीय लड़ाई चल रही है, वह किसी भी अर्थ में सत्याग्रह नहीं है। दिल्लीकी शर्मनाक घटनाएँ सत्याग्रह कदापि नहीं हैं । अन्तर्जातीय सत्याग्रहके नमूने वाइकोम और तारकेश्वर हैं। मैं वाइकोमके बारेमें तो कुछ जानता हूँ; क्योंकि माना जाता है कि मैंने उसका मार्ग प्रदर्शन किया था । यदि सत्याग्रही धैर्यवान, पूर्णरूपसे सत्य-परायण, मन, वचन और कर्मसे अहिंसात्मक रहें और यदि वे प्रतिपक्षियोंके साथ नम्रतासे पेश आते रहें और अपनी न्यूनातिन्यून माँगपर दृढ़ बने रहें तो सफलता मिले बिना रह नहीं सकती । यदि वे इन शर्तोंको पूरा कर दें तो सनातनी हिन्दू उनपर आशीर्वादकी वृष्टि करेंगे और राष्ट्र-कार्य भी कमजोर नहीं, प्रबल बनेगा । तारकेश्वरके बारेमें मैं नहीं के बराबर जानता हूँ । पर यदि वह सच्चा सत्याग्रह होगा तो उसका भी फल अच्छा ही निकलेगा ।

पत्र-लेखकका 'जोश' पैदा करनेका तरीका सत्याग्रह सम्बन्धी उनकी गलतफहमी जैसा ही है। वे इस बातको महसूस नहीं करते कि पंचायतों और दस्तावेजोंको रजिस्टर करने की व्यवस्था यदि एक तरहसे अनिवार्य बना दी जाये तो उससे लेखकका मूल उद्देश्य ही नष्ट हुए बिना नहीं रहेगा । यदि उनमें अनिवार्यता न रखी जायेगी तो यह चरखे से भी कम जोश पैदा कर सकेगा -- और नहीं तो सिर्फ इसी कारण कि गैर-सरकारी अदालतोंमें किसे पड़ी है जो अपने दस्तावेज रजिस्टर