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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दक्षिण आफ्रिकाका विस्तृत और वहाँसे कुछ कम विस्तृत यहाँका अनुभव जनताके इस विश्वासका समर्थन करता है । १९१९ में पंजाब के विशेष न्यायाधिकरणोंके फैसलोंका विश्लेषण मैंने 'यंग इंडिया' में दिया था ।[१] उससे यह बात निर्विवाद रूपसे साबित हो गई थी कि पंजाबके इन न्यायाधिकरणोंमें नियुक्त न्यायाधीशोंने पक्षपात बरता था । यूरोपीयों और भारतीयोंके बीच चलनेवाले मुकदमोंमें न्याय मिलना दुर्लभ है । मैं अपना खयाल इस मान्यता के विपरीत ही बनाना चाहता हूँ । लेकिन यह सम्भव नहीं हो पाया । मैं मानने के लिए तैयार हूँ कि ऐसी परिस्थितियोंमें कोई दूसरा व्यक्ति भी ऐसा ही करेगा । इसे दूसरी तरहसे इस ढंगसे कहा जा सकता है कि मानव स्वभाव सर्वत्र एक-सा ही रहता है। न्यायाधीश भी मनुष्य ही हैं और उनमें साधारण मनुष्यों-जैसी ही कमजोरियाँ होती हैं और वे भी उन्हींकी-सी भावनाओंसे संचालित होते हैं । इसलिए इन न्यायाधीशोंसे मेरा यह सविनय निवेदन है कि सार्वजनिक आलोचनासे वे उसी तरह चिढ़ जाया करेंगे जिस तरह वे 'केसरी' के मामलेमें चिढ़ गये जान पड़ते हैं। -- तो उसका यह अर्थ होगा कि वे स्वास्थ्यकर तत्वोंकी अवहेलना करनेपर तुले हुए हैं। श्री केलकर-जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति और अनुभवी पत्रकार जब किसी फैसलेकी आलोचना करना आवश्यक समझें तो उससे उन्हें अपने दोष दूर करनेकी प्रेरणा मिलनी चाहिए। यूरोपीय न्यायाधीश यदि स्वाभाविक द्वेष और एकतरफा प्रभाव के खिलाफ, जिसके वे शिकार बने हुए हैं, संघर्ष करना चाहते हों तो मेरी विनम्र रायके मुताबिक उन्हें भारतीय पत्रकारोंकी टीकाका स्वागत करना चाहिए और उन्हें इसके लिए प्रोत्साहन देना चाहिए; किन्तु दुःखकी बात तो यह है कि जबतक ऐसी आलोचनाएँ उनके पास उनपर फैसला देनेके लिए नहीं आतीं तबतक वे उन्हें शायद ही पढ़ते हों । श्री केलकरके खिलाफ जो फैसला दिया गया है उसका परिणाम तो यह होगा कि वर्तमान पत्रोंके सम्पादक अपनी राय या तो प्रकट ही न करेंगे या उसे लीप-पोतकर प्रकट करेंगे; और उस हालतमें उनकी असली राय अपनी अभिव्यक्ति के लिए गुप्त मार्गोंका सहारा लेगी। आज भी यह मनोवृत्ति हमारे बीच प्रचुर मात्रामें विद्यमान है। मैं यह कहे बगैर नहीं रह सकता कि श्री केलकरको दी गई सजाके परिणामस्वरूप हमारे चारों ओर फैले हुए मिथ्याचार के बढ़ने और यूरोपीयों और हिन्दुस्तानियोंके सम्बन्धों में अधिक कटुता आ जानेकी सम्भावना है। भला इस सबकी क्या जरूरत थी ।

राजा कभी गलती नहीं करता

एक न्यायाधीशपर टीका करनेके लिए श्री केलकरको ५,०००) देने पड़े। एक कलेक्टर के खिलाफ लिखनेके लिए 'क्रॉनिकल' को १५,०००) देने पड़े।[२] लेकिन लॉर्ड लिटन, इसलिए कि वे बंगालमें सम्राट्के प्रतिनिधि हैं, हिन्दुस्तानी स्त्रियोंपर बेखटके कीचड़ उछाल सकते हैं और शायद उनके भक्तोंकी तरफसे उन्हें इस 'साफगोई' के

  1. १. देखिए खण्ड १७ पृष्ठ २३९-४५ ।
  2. २. देखिए "अनुचित प्रहार", ७८-१९२४ ।