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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही है । उन्होंने ५०,००० रुपयेकी रुई खरीदी है और इस सारी रुईका बीमा करा लिया है। प्रशिक्षण केन्द्र भी खोले गये हैं, जहाँ युवा कार्यकर्त्ताओंको ओटने, धुनने और कातनेकी शिक्षा दी जाती है। वेतन आदिमें मुझे फिजूल खर्चीका आभास नहीं मिला; बोर्ड अपने विभिन्न विभागोंपर पूरा नियन्त्रण रखता है। कोयुर स्थित प्रशिक्षण स्कूलमें अभी दर्जन-भरसे अधिक नौजवान प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। ये लोग बहुत कड़े अनुशासनमें रहते हैं । वे सुबह साढ़े चार बजे उठकर सारा काम खुद करते हैं। वे सभी तरह की धुनकियों और चरखोंका प्रयोग करना सीख जाते हैं । विवरण-के साथ एक रोचक सारणी भी दी गई है। उसमें हर प्रशिक्षणार्थी द्वारा ओटी, धुनी और काती गई रुईका परिमाण बताया गया है। भजन मण्डलियों द्वारा प्रचार उनकी एक प्रमुख विशेषता है । उसके फलस्वरूप लोग इस काम में बहुत दिलचस्पी लेने लगते हैं। कोयुरमें लगभग ५० घरोंमें लोग अपने ही हाथोंसे काते सूतके वस्त्रोंका उपयोग करते हैं । पाठक जरा कल्पना करें कि ऐसे कामके लिए कितनी एकाग्रचित्तता, सुन्दर कार्यपद्धति, व्यवहारशीलता, ईमानदारी, संगठन क्षमता और सहयोगकी आवश्यकता है । अब तनिक वे खादी के लिए पूर्ण रूपसे संगठित तथा आत्मनिर्भर किसी जिलेकी भी कल्पना करें । अब वे आसानीसे समझ जायेंगे कि कमसे कम उस जिलेमें तो स्वराज्य आ ही गया है । पाठकोंको यह भी निश्चित तौरपर समझ लेना चाहिए कि यद्यपि इसकी प्रगतिका क्रम सम्यक् है फिर भी वह जिला खादी के कामकी तबतक सर्वांगपूर्ण व्यवस्था नहीं कर पायेगा जबतक वह अपने-आप अस्पृश्यताके अभिशाप से मुक्त नहीं हो जाता। क्योंकि स्वैच्छिक उत्पादन और वितरण के लिए स्वैच्छिक सहयोग जरूरी है और यह तभी सम्भव होगा जब उस क्षेत्रके अदनासे-अदना निवासीको भी उस छोटे-से संघका स्वतन्त्र नागरिक होने का गौरव अनुभव होने लगे ।

तुरन्त कार्रवाई[१]

पण्डित जवाहरलाल नेहरूने संयुक्त प्रान्त सरकारको प्रोफेसर रामदास गौड़की हिन्दी पाठ्यपुस्तकें जब्त किये जानेके बारेमें नीचे लिखा पत्र भेजा है :

संयुक्त प्रान्तकी प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीका बयान संयुक्त प्रान्त सरकार द्वारा जारी किये गये उस नोटिसकी ओर आकर्षित किया गया है जिसमें सरकारने १८९८ के अधिनियम ५ के खण्ड ९९ क के अन्तर्गत प्रोफेसर रामदास गौड़की हिन्दी पाठ्य पुस्तकोंकी संख्या ३, ४, ५ और ६ को सभी प्रतियों और उनके सभी उद्धरणोंको भी प्रतिबन्धित घोषित कर दिया है। ये पुस्तकें पिछले कुछ वर्षोंसे बहुतेरी पाठशालाओंमें प्रचलित हैं। इन पुस्तकों में मुख्यतया हिन्दीके विशिष्ट लेखकोंके लेख ही संकलित हैं । यह समझना कठिन है कि भारतीय दण्ड संहिताके खण्ड १२४ क के अनुसार पुस्तकोंके कौन-कौनसे अंश या अनुच्छेव आपत्तिजनक माने गये हैं। में आपका बड़ा कृतज्ञ होऊँगा यदि आप

  1. १. देखिए " पत्र : जवाहरलाल नेहरूको ", २७-७-१९२४ ।