ईश्वरीय वरदान
बाढ़ के कारण आम तौरपर मलाबारमें बड़ी तबाही हुई है; लेकिन लगता है, हमारे दलित देशभाइयोंके लिए यह बाढ़ एक वरदान साबित हुई है। यह बात वाइकोम सत्याग्रह कैम्पसे लिखे श्री राजगोपालाचारी के पत्र के निम्नलिखित अंशसे स्पष्ट हो जायेगी :
बाढ़ के परिणामस्वरूप मन्दिर प्रवेश और सामाजिक समानताकी समस्या दर्जन भर से अधिक स्थानों में अपने आप हल हो गई है, क्योंकि इस वैवी विपदाके कारण सभी जातियों और धर्मोके लोगोंको एक साथ ऐसे मन्दिरों और घरोंमें शरण लेनी पड़ी, जिनमें बहुत से लोगोंका प्रवेश वर्जित था । इस ईश्वरीय प्रकोप-के कारण नम्बूद्रियों और पुलैयों को एकसाथ बैठकर खाना पड़ा है। इस राज्य में जो बाढ़ आई, उसके परिणामस्वरूप वाइकोम शेष राज्यसे बिलकुल ही कट गया है ।
सर्वसामान्य विपत्ति लोगोंको जोड़नेवाली सबसे बड़ी ताकत है । यह बड़ी क्रूर होती है और व्यक्ति-व्यक्ति के बीच भेद नहीं मानती । यह राव और रंक दोनों को अगाध जलराशिके हवाले कर देती है ।
मूक साधना
उसी पत्रका एक और अंश आन्दोलनमें लोग कैसा जीवट दिखा नीचे दे रहा हूँ । उससे प्रकट होता है कि इस रहे हैं और जो आन्दोलन इस पत्र में वर्णित ऐसे जीवट के साथ चलाया जा रहा हो, उसे बन्द करनेकी सलाह कोई कैसे दे सकता है ? अंश इस प्रकार है :
मौसम प्रतिकूल रहनेपर भी आश्रममें चरखके काममें कोई ढील नहीं आने दी जाती। लगभग सभी स्वयंसेवक कताई करना अच्छी तरह जानते हैं और पुलिस के घेरोंके सामने डटे हुए स्वयंसेवकोंके लिए चरखे भेजे जाते रहते हैं। जब जोरोंकी वर्षा हो रही हो, तब जरूर ऐसा नहीं किया जाता। आधे लोगोंने तो धुनना भी सीख लिया है और अब मैं सभी कताई करनेवालोंके लिए अपनी-अपनी जरूरतकी सारी सई स्वयं ही धुनना अनिवार्य करने जा रहा हूँ। पट्टी बनानेका काम चल रहा है। शीघ्र ही हम एक करघा भी लगानेवाले हैं।
जो सुसंस्कृत नौजवान इतनी ईमानदारी से और इस विश्वाससे प्रेरित होकर यह काम कर रहे हैं कि इससे स्वयं उनके मन-प्राण भी शुद्ध होंगे और साथ ही राग, अमर्ष तथा पूर्वग्रहके विरुद्ध उनके संघर्ष में भी यह सहायक होगा, अतः मैं अत्यन्त विनम्र भावसे कहना चाहता हूँ कि वे भी मुझे या जनताको धोखा दे सकते हैं, मैं यह बात नहीं मान सकता। इसमें उनकी दिलचस्पी है ही नहीं; उनकी आस्था अपने काममें ही है ।