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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रस्ताव रखे गये जो उन प्रस्तावोंसे बिलकुल उलटे थे, जिन्हें सभामें पेश करनेका इरादा किया गया था । हमारे प्रतिनिधि तथा अन्य बहुतसे सवर्णोंने तुरन्त सभा-भवनका त्याग कर दिया और बहुत ही प्रतिष्ठित सवर्ण हिन्दुओंकी एक दूसरी सभा बुलाई। इस सभाका आयोजन चेंगनूरके प्रमुख जमींदार वंजोपोशे सरदारके घरपर किया गया। उन लोगोंके छलपूर्ण हथकंड़ोंकी बात जाने दीजिए, हमें जिस बातपर दुःख और क्षोभ है वह यह कि श्री वंजीवोशेपर कीचड़ उछालने और उनको बोलने न देनेका संगठित प्रयास किया गया। यहाँतक कि उनपर हाथ उठाने की कोशिश की गई। बेचारेको वहाँसे चुपचाप खिसक आना पड़ा। इस घटनाकी चर्चा मैंने यह जतानेके लिए की कि त्रावणकोर में आज कांग्रेसका प्रचार किस तरहसे हो रहा है ।

इस प्रचार कार्यके संयोजकोंसे मेरा अनुरोध है कि वे इसका स्पष्टीकरण भेजें । उसे मैं सहर्ष छाप दूँगा । मुझे भरोसा है कि यदि उनसे कोई गलती हुई होगी तो वे उसे स्वीकार करनेमें संकोच नहीं करेंगे ।

संवाददाताओंको चेतावनी

मैंने बड़ी मुश्किलसे -- बड़े-बड़े कष्ट सहकर सहृदय होनेका जो यश कमाया था उसे अहमदाबादमें अ० प्रे० संवाददाताने (मुझे आशा है कि अस्थायी रूपसे) धो बहाया है। उसने खबर भेजी कि मैं पीड़ित मलाबारके लिए केवल यही सन्देश दे सकता हूँ कि जो लोग भूखे, वस्त्रहीन और बे-घरबार हो गये हैं, उन्हें सूत कातना चाहिए ।[१] अपनी मानहानिके लिए यदि श्री पेन्टरको १५,००० रुपये मिल सकते हैं तो मेरा खयाल है कि मुझे अपनी इस बदनामी के लिए कमसे कम १,५०,००० मिलने चाहिए । अगर मुझे यह रकम मिल जाये तो मैं अपनी खोई हुई कीर्ति कुछ अंशमें फिर प्राप्त कर लूं और सारीकी-सारी रकम मलाबारके पीड़ितोंको भेज दूं। लेकिन मैं पेन्टर-जैसा नहीं हूँ । मैं तो संवाददाता व संवाद-संस्था दोनोंको सब दोषोंसे बरी किये देता हूँ । स्थानिक संवाददाताने मुझसे कहा है कि वह सभामें गया ही नहीं था । जो लोग सभामें गये थे, उन्होंने भी पूरी बात नहीं सुनी। लेकिन उन्हें कुछ ऐसा खयाल रहा कि मैंने कताईके बारेमें कुछ कहा था । इससे अधिक स्वाभाविक क्या हो सकता है कि मैं मलाबारके पीड़ित लोगोंको कपड़े, खाने और रहनेका साधन प्राप्त करने के लिए कातनेकी प्रेरणा दूं ? क्या आचार्य राय यही काम नहीं कर रहे हैं ? बेचारा संवाददाता यह भूल ही गया कि आचार्य राय यह काम लोगों के पुनर्वासके बाद कर रहे हैं। खैर ; इस भारी भूलसे संवाददाता और सर्वसाधारण दोनों ही सबक ले सकते हैं । सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंका यश संवाददाताओंकी मर्जीका खेल है। उनके लिए नेताओंके भाषणों और कामोंकी गलत रिपोर्ट भेज देना मामूली बात है। सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंको भी चाहिए कि वे छपी हुई सभी खबरोंको ब्रह्म वाक्य न मान लिया

  1. १. देखिए " पत्र : कामाक्षी नटराजनको ", ६-८-१९२४ और “टिप्पणियाँ ", ७८-१९२४ का उप- शीर्षक "मलाबारकी बाढ़ " ।