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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तत्पर और उदार प्रतिक्रिया हुई है । महाविद्यालय के छात्रोंने श्रद्धानन्दजी के गुरुकुलमें पढ़नेवाले उन विद्यार्थियोंकी परिपाटीका अनुकरण किया है जिन्होंने दक्षिण आफ्रिकाके आन्दोलनके दिनोंमें मजदूरी करके दानके लिए राशि इकट्ठी की थी। महाविद्यालय के छात्रोंने अपने विद्यालयके लिए बन रही इमारतोंके निर्माणमें मजदूरोंकी तरह हाथ बॅटाया है और वे प्राप्त होनेवाली यह मजदूरी सहायताकी राशिमें दे देंगे। इस प्रकारके कामकी सम्भावनाएँ अनन्त हैं ।

१२ वर्षसे भी कम उम्र के लड़के-लड़कियोंने कई दिनोंके लिए दूध लेना बन्द कर दिया है और उससे होनेवाली बचत वे सहायता कोष में देंगे । इस तरह कई तो प्रतिदिन तीन-तीन आनेकी बचत कर लेंगे । वयस्क लोग हर दिन एक वक्तका भोजन नहीं कर रहे हैं।

लड़के-लड़कियाँ बहुत जरूरी कपड़ोंके अलावा सभी कपड़े दानमें दे रहे हैं । एक लड़कीने अपने चाँदी के पायजेब दे दिये हैं। एक लड़केने अपने सोनेके कीमती कुण्डल दे दिये हैं। एक बहनने सोनेके अपने चार भारी-भारी कंगन भेजे हैं। एक दूसरी बहनने भी अपना सोनेका वजनी हार दानमें दिया है । दाताओंकी सूची यहीं पूरी नहीं होती । मैंने तो नमूने के तौरपर कुछ उदाहरण-भर दिये हैं। एक छोटी-सी बालिकाने चुराकर जमा किये हुए अपने सारे पैसे निकालकर दे दिये । राष्ट्रीय कालेजके विद्यार्थियोंने तथा अन्य लोगोंने मुझे अपना काता हुआ ढेरका ढेर सूत दिया है। कुछ दूसरे लोग इन पीड़ितोंके लिए कुछ समयतक रोज कताई करनेका इरादा रखते हैं ।

अगले स्तम्भमें चन्देकी एक सूची दी गई है। कईने तो बहुत उदारतासे दान दिया है। किन्तु, ऊपर जिनकी बात की गई है, वे मेरे लिए अधिक मूल्यवान हैं ।

ईश्वर करे कि इन चन्दोंसे, और विशेषकर छोटे-छोटे बच्चोंके चन्दों और आत्म-त्यागसे विपद्ग्रस्त क्षेत्रके बेघरबार, भूखे नंगे स्त्री-पुरुष तथा बच्चोंको राहत मिले। मैं 'यंग इंडिया' के पाठकोंको आमन्त्रित करता हूँ कि उनमें से जिन लोगोंने इस कोषके लिए अन्यत्र दान नहीं दिया हो, वे अब अपना-अपना हिस्सा दें। मेरे सामने जो तार पड़े हुए हैं, उनमें कहा गया है कि वस्त्रों और रुपयोंकी समान रूपसे जरूरत है इसलिए वस्त्र भी भेजे जा सकते हैं। गरीबसे गरीब लोग भी कुछ-न-कुछ आत्म-त्याग करके यह दिखा दें कि वे अपने मलाबारवासी देशभाइयोंके दुख-दर्दको अपना ही दुख-दर्द मानते हैं ।

कपड़े

कपड़े बहुत अधिक मात्रामें प्राप्त हो रहे हैं । इस सम्बन्धमें मैं पाठकों को सूचित करना चाहता हूँ कि खादीके और दूसरे कपड़ोंमें भेद नहीं किया जा रहा है। जिन लोगोंके पास अब भी मिलके या विदेशी कपड़े हों, वे उन्हें भेज सकते हैं । बम्बई से पूछा गया है कि कपड़े कहाँ दिये जायें। मेरा सुझाव है कि इसकी व्यवस्था प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके द्वारा हो । जबतक यह व्यवस्था न हो जाये, वे प्रिंसेज स्ट्रीट बम्बई स्थित 'नवजीवन' डिपोमें दिये जा सकते हैं । लेकिन दानकर्त्ता निम्नलिखित बातोंका खयाल रखें :