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३३१. पत्र : कुमारी सोंजा श्लेसिनको

साबरमती
१५ अगस्त, १९२४

प्रिय कुमारी श्लेसिन,

तुम्हारा पत्र यद्यपि काफी देरसे मिला फिर भी पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई । शायद तुम इस पत्रको बहुत साफ-सुथरा लिखना चाहती थीं; मगर तुम इसमें बिलकुल कामयाब नहीं हुईं। वही पहले जैसी गन्दगी, जहाँ-तहाँ स्याही के धब्बे । पत्रसे मानो तुम्हारी स्याही-सनी अँगुलियाँ झाँक रही हैं । तुमने जो प्रमाणपत्र[१] चाहा है सो भेज रहा हूँ । अब तुम मुझपर झूठ बोलनेका आरोप लगा सकती हो; क्योंकि इस प्रमाणपत्र में मैंने तुम्हारे अव्यवस्थितपनका उल्लेख ही नहीं किया । आशा है नया 'मालिक' अपेक्षाकृत भाग्यशाली रहेगा। तुमने मुझपर जो आरोप लगाये हैं मैं उनमें से एकको भी स्वीकार करनेमें असमर्थ हूँ । तुम्हें "कामके बारेमें प्रमाण-पत्र" देनेकी फिक्र कैसे करूँ ? लेकिन आखिर कट्टर सिद्धान्तवादी भी कैसे गिरे ? उस २४ पौंडकी रकमके सम्बन्धमें मेरा खयाल था कि १५० पौंडके ड्राफ्टमें वे भी शामिल हैं। खैर, में पारसी रुस्तमजीको लिख रहा हूँ कि १५० पौंडमें से जो कुछ भी रहता हो वह सब वे बट्टे खाते में डाल दें ।

मेरा स्वास्थ्य ठीक है । तुमने पत्र लिखकर मेहरबानी की है; क्या इसे जारी रखोगी ?

पत्रकी बाकी बातोंके जवाब रामदास देगा।[२]

तुम्हारा,
मो० क० गांधी

सहपत्र

सत्याग्रहाश्रम
साबरमती
१५ अगस्त, १९२४[३]

कुमारी सोंजा श्लेसिनने दक्षिण आफ्रिकामें मेरे सार्वजनिक जीवनके महत्त्वपूर्ण दौरमें मेरे विश्वस्त सचिवके रूपमें लगभग सात वर्षतक काम किया था । इनको

  1. देखिए सहपत्र ।
  2. पत्रका अनुवाद महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे किया गया है।
  3. ३. मूलमें १९१४ है जो कि गलतीसे लिखा गया होगा ।