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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुत ही उत्तरदायित्वपूर्ण काम सौंपा गया था जिसमें हिसाब-किताब रखनेका भी काम था और उसमें हजारोंकी लम्बी-लम्बी रकमोंका लेन-देन भी होता था । वे इस कामको करते हुए कौमों और विभिन्न राष्ट्रोंके सैकड़ों लोगोंके सम्पर्कमें आई । दक्षिण आफ्रिकामें मेरे अन्तिम कारावास कालमें मेरे कार्योंकी देखभालकी पूरी जिम्मेदारी इन्हींके कन्धोंपर आ पड़ी थी। मुझे उनकी प्रामाणिकता अथवा योग्यतापर सन्देह करनेका अवसर कभी नहीं आया । वास्तवमें यह सेवा कार्य वे वेतनके खयाल-से नहीं, वरन् जो काम उन्हें सौंपा गया था उसी कामको सही काम समझने तथा उसके प्रति रुचि रखनेके कारण करती थीं। वे सेवाके लिए हर क्षण उद्यत रहतीं । उनके संकेतलिपिके ज्ञान और साहित्यिक प्रतिभासे मुझे बड़ी मदद मिलती थी । मैं इनसे अधिक अच्छे सचिवकी अपेक्षा ही नहीं रख सकता था। मुझे यह सुनकर खुशी होगी कि उन्हें ऐसा कार्य दिया गया है जिसमें पूरी सावधानी और पूर्ण प्रामाणिकता और योग्यताकी अपेक्षा रखी जाती है ।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०११८ ) की फोटो नकल तथा महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

३३२. पत्र : कामाक्षी नटराजनको

साबरमती
१५ अगस्त, १९२४

प्रिय श्री नटराजन,

जेल जानेसे पहले मैंने श्री पेटिटको पत्र लिखकर उनसे यह जानना चाहा था कि क्या पण्डित बनारसीदासको आई० सी० ए०[१] कोषसे उस कामके लिए पैसा दिया जा सकता है जो उन्होंने विदेशोंमें बसे हुए भारतीयोंके सम्बन्धमें किया है। जेलमें मुझे ऐसा बताया गया था कि श्री पेटिट मांगी हुई रकमकी आधी रकम दिये जानेकी सिफारिश करनेको तैयार हैं। परन्तु श्री पेटिटको इस बातका स्मरण नहीं है। कालेजकी पढ़ाईके महीनोंमें पण्डित बनारसीदास हिन्दी पढ़ाने के लिए गुजरात राष्ट्रीय पाठशालाको प्रतिदिन लगभग दो घंटे देते हैं। अपना बाकी वक्त और चार महीनोंकी लम्बी छुट्टियोंका समय वे विदेशोंमें बसे भारतीयोंके काममें लगाते हैं । उन्होंने इस कामको अपना ही काम मान लिया है और इन मामलोंके विशेषज्ञ बन गये हैं। श्री पेटिट बनारसीदासजीकी सेवाओंका महत्त्व तो समझते हैं परन्तु वे कहते हैं कि उन्हें बम्बई में[२] रहना चाहिए। पण्डित बनारसीदास शान्त स्वभावके और एकान्त सेवी व्यक्ति हैं । वे मुख्यतः एक अध्ययनशील व्यक्ति हैं । मैंने उन्हें अपने

  1. १. इम्पीरियल सिटिजनशिप एसोसिएशन (साम्राज्यीय नागरिकता संघ )
  2. २. देखिए " पत्र : जे० बी० पेटिटको ", २६-७-१९२४ ।