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पत्र : कामाक्षी नटराजनको

आश्रम में कमरे दे दिये हैं और वे आजकल वहीं रह रहे हैं। में नहीं समझता कि बम्बईमें रहनेसे उनका काम अधिक महत्त्वपूर्ण बन जायेगा । हाँ, यह जरूर है कि जब कभी बम्बईमें उनकी मौजूदगीकी जरूरत पड़ेगी, वे वहाँ जा सकते हैं। फिलहाल इन सज्जनको गुजरात विद्यापीठसे मेरी सिफारिशपर १३० रु० प्रतिमास दिये जाते हैं । फीजी के उनके सहयोगी श्री तोतारामजी आश्रममें रहते हैं। उन्हें आश्रम कोषसे ५० रुपये मासिक दिये जा रहे हैं। पण्डितजीको तार-चिट्ठी आदिके डाकखर्चके लिए पचास रुपये मासिक दिये जाते हैं। लेकिन में महसूस करता हूँ कि जब उनका अधिकांश समय विदेशों में बसे भारतीयोंके सम्बन्धमें व्यतीत होता है, तब कालेज या आश्रमपर उनके खर्चका बोझ डालना वाजिब नहीं । इसलिए मैं ऐसा सोचता हूँ कि संघको पिछले खर्चका कमसे कम तीन-चौथाई अदा कर देना चाहिए और भविष्य में कालेज तथा आश्रमसे दिये जानेवाले २३० रु०का तीन-चौथाई भाग भी देना चाहिए। क्या आप कृपया मुझे बतायेंगे कि मेरा यह सुझाव आपको ठीक जँचता है या नहीं ।[१]

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ९९८९) की फोटो नकलसे । किया है उसके कुछ


२४-३८
  1. १. इस पत्रको प्राप्ति-स्वीकार करते हुए नटराजनने जवाब दिया था कि... "मेरा खयाल है कि पण्डित बनारसीदास और तोतारामजीके कामके लिए आपने आश्रम कोषसे जो खर्च अंशका संस्था द्वारा भुगतान करनेकी आपको इच्छा पूरी की जा सकती है और . . . मै समझता हूँ कि पण्डितजी और तोतारामजीको अपने मासिक खर्चका ब्योरा डायरीके या आपके सुझाये किसी अन्य रूपमे पेश करने में कोई आपत्ति नहीं होगी. . .।”