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परिशिष्ट

अधिकांश मानवता सदासे 'अनुग्रता', 'स्वर्ण-सन्तुलन', 'मध्यममार्ग', 'आत्म- संयम' की ही सहज आकांक्षा करती रही है और इसीके लिए प्रयत्नशील रही है । अब आप जबतक हमारे नेताओंके सिरमौरकी हैसियत से देशके सामने स्वराज्यकी कोई ऐसी योजना नहीं रखेंगे जिससे जनता के सभी वर्गोको यह अभय मिल जाये कि किसी भी वर्गको बिलकुल नेस्तनाबूद नहीं किया जायेगा, यद्यपि हर प्रकारकी और हर किसीकी अतिको रोकनेका यथोचित प्रबन्ध किया जायेगा, तबतक किसी भी वर्गकी जनता पूरे मनसे संघर्ष में नहीं उतरेगी और स्वराज्यके लिए किये जानेवाले प्रयत्नोंमें सच्ची एकता पैदा नहीं हो सकेगी और इसीलिए सच्चा स्वराज्य कभी स्थापित नहीं किया जा सकेगा ।

'यंग इंडिया' में स्थानकी मर्यादा है और वह बहुत कीमती है; इसलिए मुझे उसमें बहुत अधिक स्थान नहीं घेरना चाहिए; हालांकि मेरा हार्दिक विश्वास है कि 'यंग इंडिया' के स्तम्भों में अभीतक जितने भी विषयोंके बारेमें लिखा गया है, उनमें यह विषय सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण या परिणामकी दृष्टिसे सर्वाधिक दूरव्यापी है, अर्थात् भारतको किस प्रकारके स्वराज्यकी जरूरत है -- यही सर्वाधिक महत्त्वका विषय है ।

मैं गत तीन वर्षोंसे इस विषयकी ओर मौके-बेमौके आम जनता और (बनारसकी स्थानीय कमेटीसे लेकर अखिल भारतीय कमेटीतक) सभी स्तरोंपर कांग्रेस कमेटियों और अलग-अलग नेताओंका ध्यान आकर्षित करता रहा हूँ । आपकी गिरफ्तारी के दिनतक और फिर आपकी रिहाईके बादसे भी मैं आपके पास इस सम्बन्धमें पत्र और प्रकाशित सामग्री भेजता रहा हूँ । मैं इसके सम्बन्धमें बार-बार अपनी राय व्यक्त कर चुका हूँ और मैं यहाँ उसे दोहराऊँगा नहीं । १९२३ के आरम्भमें थोड़े समय के लिए मुझे काफी आशा बँध गई थी कि इस विषयपर यथायोग्य विचार किया जायेगा, इसलिए कि देशबन्धु दास जैसे प्रमुख नेताने कुछ समयतक इस विषयमें दिलचस्पी ली थी। लेकिन उनकी दिलचस्पी बहुत ही थोड़े समयतक रही । और मुझे भी कुछ ऐसा लगने लगा था कि अभी इस विषयकी चर्चा के लिए 'उप-युक्त समय' नहीं आया है।

परन्तु आपके लेखमें उपर्युक्त दो महत्त्वपूर्ण शर्तोंपर मेरी नजर पड़ी। उससे मुझे यह एक और प्रयास करनेकी प्रेरणा मिली ।

हम कुछ लोगोंको इस विषयमें बहुत ही दिलचस्पी है। इसलिए यदि आप 'यंग इंडिया' के स्तम्भों में इसके बारेमें कुछ लिखें -- ऐसा कुछ लिखे जो निराशा के अँधेरेमें प्रकाशकी किरण-जैसा हो -- तो हम "हम कुछ लोग"अत्यंत ही कृतज्ञ होंगे ।

आपका,
भगवानदास

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-५-१९२४