पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/६२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

परिशिष्ट २

कौंसिल प्रवेशके सम्बन्ध में स्वराज्यवादियोंका वक्तव्य[१]

२२ मई, १९२४

हम महात्मा गांधी के आभारी हैं कि उन्होंने कौंसिल प्रवेशकी समस्या से सम्बन्धित विभिन्न प्रश्नोंपर हमारे साथ चर्चा करनेका कष्ट उठाया। उन्होंने हमें इस विषयपर समाचारपत्रों में प्रकाशनके विचारसे दिये गये अपने वक्तव्यकी एक अग्रिम प्रति देखनेका अवसर दिया, उनके इस सौजन्यके लिए हम कृतज्ञता प्रकट करते हैं। उन्होंने बात-चीत के दौरान और समाचारपत्रोंको दिये गये अपने वक्तव्यमें जो विचार व्यक्त किये थे उन सभीपर हमने उनके महान् व्यक्तित्वको ध्यानमें रखते हुए बड़ी ही सावधानीके साथ विचार कर लिया है। उनके व्यक्तित्व और उनके विचारोंके प्रति हमारे हृदय में बड़ी श्रद्धा है, तथापि हम उनके तर्कोंसे अपने-आपको सहमत नहीं कर पाये ।

हम खेदपूर्वक स्वीकार करते हैं कि कौंसिल प्रवेशके सम्बन्धमें स्वराज्यवादियोंके दृष्टिकोणकी तर्क-संगतिके बारेमें हम महात्मा गांधी को सहमत करनेमें असमर्थ रहे हैं। हम समझ नहीं पाये कि कौंसिल प्रवेशको नागपुर कांग्रेसके असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावमें निहित सिद्धान्तसे असंगत कैसे माना जा सकता है ।

किन्तु यदि असहयोगको अधिकांशतः एक मानसिक दृष्टिकोण ही माना जाये, राष्ट्रीय जीवनके वर्तमान यथार्थपर एक जीवन्त सिद्धान्तको लागू करने तथा उसके अनुसार व्यवहार करनेसे असहयोगका कोई अधिक सम्बन्ध न हो और राष्ट्रीय जीवनको विनियमित करनेवाली नौकरशाही सरकारके बदलते हुए रवैयेको देखकर समय-समयपर तदनुकूल व्यवहार करनेसे उसका कोई अधिक सम्बन्ध न हो, तो हम देशके वास्तविक हितोंके साधनकी खातिर असहयोगतक को तिलांजलि देना अपना कर्त्तव्य समझते हैं ।

हमारी समझमें तो इस सिद्धान्तका अथं राष्ट्रके स्वस्थ विकासके लिए अपे-क्षित सभी कार्योंमें आत्मनिर्भर बनना और स्वराज्यकी ओर हमारी प्रगतिमें बाधक बननेवाली नौकरशाहीका प्रतिरोध करना है। पर हम चाहते हैं कि शब्दोंको लेकर चलनेवाली यह अर्थहीन बहस समाप्त कर दी जाये। हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमने इस सिद्धान्तको जिस रूपमें समझा है उसके मुताबिक कौंसिल-प्रवेश और असहयोगके सिद्धान्तमें कहीं कोई असंगति नहीं है, न हो सकती है।

हम यह भी स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमने अपने कार्यक्रममें ' अड़ंगा ' शब्दका प्रयोग उस पारिभाषिक अर्थ में नहीं किया है जिसमें वह इंग्लैंडके संसदीय इतिहासमें प्रयुक्त हुआ है । अधीनस्थ, सीमित अधिकारोंवाले विधान-मंडलोंमें उस अर्थमें तो

  1. १. इसे चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरूने संयुक्त रूपसे स्वराज्य पार्टीकी ओर से प्रकाशित किया था।