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परिशिष्ट

'अड़ंगा ' डालना सम्भव भी नहीं है । सुधार अधिनियमके अन्तर्गत हमारे यहाँकी विधान सभाएँ और प्रान्तीय विधान मण्डल निःसन्देह अधीनस्थ और सीमित अधिकारोंवाले विधान मण्डल ही हैं। हमें अपना अर्थ स्पष्ट करनेके लिए शायद कोई दूसरा शब्द काममें लाना चाहिए था। पर हम यहाँ इतना बतला देना चाहते हैं कि संसदीय शब्दावली में 'अड़ंगा' शब्दका जो अर्थ लगाया जाता है, वास्तवमें वैसी कोई बाधा तो हमारे यहाँ होती ही नहीं। हमारे यहाँ तो जो होता है वह प्रतिरोध ही अधिक है, स्वराज्य के मार्ग में नौकरशाही सरकार द्वारा पैदा की गई बाधाओंका प्रतिरोध । अड़ंगा या बाधा शब्दसे हमारा अभिप्राय वास्तवमें इसी प्रतिरोधसे था । हमने स्वराज्य पार्टीके विधानकी प्रस्तावनायें असहयोगकी जो परिभाषा की और जिस ढंगसे उसे पेश किया था उससे यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। हमें लगता है कि नौकरशाही की ओरसे पैदा की जानेवाली ऐसी बाधाओंको हटानेपर जोर देना जरूरी है। हमने विधान मण्डलों में अभीतक इसी नीतिका अनुसरण किया है और यही नीति है जिसे भविष्य में राष्ट्रीय जीवनकी परिवर्तनशील आवश्यकताओं और समस्याओं पर दिन-दिन अधिक कारगर रूपसे लागू किया जाना चाहिए ।

अब इस नीतिको " एक समान, सतत और संगत बाधा " की नीति कहना उपयुक्त रहेगा या नहीं -- इसके बारेमें भी हम नहीं चाहते कि कोई शाब्दिक बहस छिड़े। हमारा काम तो अपनी नीतिका निरूपण-भर कर देना है। हाँ, हमारे मित्र लोग अगर चाहें तो उसके लिए अधिक उपयुक्त संज्ञाकी तलाश करें। अब हम इस सिद्धान्त और नीतिकी दृष्टिसे विधान मण्डलों और उनसे बाहर किये जानेवाले कार्यका भावी कार्यक्रम पेश करते हैं ।

विधान मण्डलोंके अन्दर रहकर हम :

(१) तबतक 'बजटों' को हर बार अस्वीकृत करते रहेंगे जबतक हमारे अधिकारोंको मान्यता देनेकी खातिर या संसद और इस देशकी जनता के बीच किसी समझौते के फलस्वरूप सरकारी व्यवस्था नहीं बदली जाती। अपने इस कार्यका औचित्य सिद्ध करनेके लिए केन्द्रीय सरकारके बजटसे सम्बन्धित चन्द मुख्य-मुख्य तथ्य बतला देना ही पर्याप्त है । प्रान्तोंके 'बजटों' पर भी ये तथ्य कमोबेश लागू होते हैं। (रेलवेको छोड़कर) बजटमें कुल १३१ करोड़ रुपयेकी राशिकी व्यवस्था की जाती है पर इसमें से केवल १६ करोड़ रुपये की राशिके बारेमें हमें मतदानका अधिकार रहता है । इतना ही नहीं, मतदानके क्षेत्रसे बाहर रखी जानेवाली राशिमें से ६७ करोड़ तकको राशि, बजटकी कुल राशिकी आधी से अधिक राशि, सेनापर व्यय की जाती है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस देशकी जनताको बजटकी कुल राशिके आठवें-से भी कम हिस्सेपर मत देनेका अधिकार है और इस सीमित अधिकारके निर्वहनको भी यदि गवर्नर जनरल चाहे तो विफल बना सकता है।[१] इसलिए यह सर्वथा स्पष्ट है कि जनताको न तो 'बजट' तैयार करनेमें हाथ बँटानेका अधिकार है और न

  1. १. भारत सरकार अधिनियमके खण्ड ६७क के द्वारा सपरिषद् गवर्नर जनरलको पद अधिकार प्रदान किया है कि वह आवश्यक होनेपर ऐसी कटौतियोंको रद कर सकता है।