धर्म-संकट
एक करुण पत्र[१] मेरे सम्मुख है। मैं इस भाईको जल छिड़ककर शुद्ध होनेसे इनकार करनेपर बधाई देता हूँ। हम अस्पृश्यताको पाप मानते हैं, इसलिए जल छिड़कनेकी प्रक्रियासे शुद्ध होकर अपने ही सिद्धान्तपर पानी कैसे फेर सकते हैं? इस राजपूत युवकको अपने जाति-भाइयोंको विनयपूर्वक समझाना-बुझाना चाहिए; किन्तु वे फिर भी न समझें तो उसे जातिसे-च्युत किये जाने के दण्डको नम्रतापूर्वक स्वीकार कर लेना चाहिए; उसे छीटें लेकर शुद्ध होनेकी प्रक्रिया तो कभी पूरी न करनी चाहिए। मेरा तो यही दृढ़ मत है।
- [गुजरातीसे]
- नवजीवन, ११-५-१९२४
१७. पत्र: महादेव देसाईको
सोमवार [१२ मई, १९२४][२]
- पूर्ण विराम
- उर्दू और कताई सीखना
- समयकी पाबन्दीका अनुरोध
- कताई और बुनाईसे गुजारा
- लालाजीका पत्र
- सरोजिनी देवीकी ओरसे
- असंगत नहीं
- श्री मजलीके साथ व्यवहार
- ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’
- एन्ड्रयूजकी टिप्पणियाँ (जो गत सप्ताह भेजी थीं)
- जेलके अनुभव
- साम्राज्यकी चीजें
- मोपलोंके लिए राहत
भाई श्री महादेव,
पढ़ते हुए अशुद्धियोंको ठीक कर लेना। मुझे तुम्हारे दो पत्र मिले हैं। आजकी डाकसे ऊपर लिखीं हुई सूचीके अनुसार सामग्री भेज रहा हूँ। एन्ड्रयूजकी टिप्पणियाँ तो तुम्हारे पास पहुँच ही चुकी हैं। अब और कुछ भेजनेका इरादा नहीं है।