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पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

इरादा होवे तभी हम प्रतिज्ञा लें, अन्यथा नहीं। ऐसी प्रतिज्ञाके पीछे हरिश्चन्द्रके समान ही दृढ़ता होनी चाहिए; नहीं तो ऐसी प्रतिज्ञा न लेना ही बुद्धिमानी है।

मो० क० गांधी

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १८-५-१९२४

१९. पत्र: मु० रा० जयकरको

१३ मई, १९२४

प्रिय श्री जयकर,

दलितवर्ग प्रचारक मण्डल (डिप्रेस्ड क्लासेज मिशन) के सदस्य मुझसे मिलने आये थे। शायद आपको मालूम हो कि श्री बिड़ला इस बातसे इनकार करते हैं कि उन्होंने उनके लिए मन्दिर बनवाने का वादा किया था। मैंने उनसे कह दिया है कि यदि वे स्वयं अपने बीच एक अच्छी धनराशि एकत्र कर लें तो मैं भी उनके लिए कुछ धन इकठ्ठा करनेका प्रयत्न करूँगा। वे चाहते हैं कि मैं उनके साथ हुई अपनी बातचीतका सार आपको बता दूँ। इसीलिए यह पत्र लिखा है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
स्टोरी ऑफ माई लाइफ, खण्ड २

२०. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

जुहू
वैशाख सुदी ९ [१३ मई, १९१४]

भाई श्री ५ घनश्यामदास,

आपका पत्र मुझको मिला है।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि जातिवालोंके विरोधको आप बरदास कर सकेंगे तो आखरमें कुल अच्छा हि होगा। हम सबमें देवी और आसुरी प्रकृति कार्य कर रही है। इसलीये थोड़ी बहोत अशांति अवश्य रहेगी। उससे डरनेकी कुछ आवश्यकता नहि है। प्रयत्नपूर्वक निग्रह करते रहने से आसुरी प्रकृतिका नाश हो सकता है परंतु

१. वैशाख सुदी ९, १३ मईको पड़ी थी। गांधीजीके हस्ताक्षरके नीचे दी गई तिथिसे पता चलता है कि उन्होंने पत्रपर दूसरे दिन हस्ताक्षर किये थे।