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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
किन्तु मैं और कई दूसरे लोग इस बातको नहीं समझ पाते कि इस समय कागजका खर्च कम होनेपर भी घटिया कागजके ८ पृष्ठोंके पत्रका मूल्य इतना अधिक क्यों है। हिन्दुस्तानमें आम पाठकोंके लिए ‘यंग इंडिया’ का दो आना मूल्य बहुत ज्यादा है और ‘नवजीवन’का सवा आना मूल्य भी बहुत ज्यादा है। हिन्दुस्तान बहुत गरीब देश है। इस बातको सभी मानते हैं। यदि इन पत्रोंको मुनाफा हो रहा है तो क्या यह उचित नहीं है कि उनका मूल्य घटा दिया जाये और उनको इस प्रकार बहुसंख्यक जन-साधारणके लिए सुलभ बना दिया जाये?
मैं इस सम्बन्धमें यह कह दूँ कि “सैट रिव्यू,’ ‘नेशन ऐंड एथेनियम’, ‘अमेरिकन नेशन’ और ‘स्पैक्टेटर’ आदिकी एक प्रति ६-६ पेंसकी मिलती है और यह बहुत कम माना जायेगा क्योंकि उनकी पृष्ठ-संख्या आपके पत्रको पृष्ठ-संख्यासे तीन गुनेसे भी अधिक होती है। यदि आपके इन साप्ताहिकोंका मूल्य घटाना सम्भव न हो तो क्या आप सुविधापूर्वक इनकी पृष्ठ संख्या नहीं बढ़ा दे सकते।
हममें से कुछ लोगोंका खयाल है कि जबतक आप ‘यंग इंडिया’ और ‘नवजीवन’का सम्पादन करते हैं तबतक उनको २ से ३ पैसे तक बेचने में भी घाटा न रहेगा। यदि आप इस सम्बन्धमें जनताके सामने स्पष्टीकरण देना अपना कर्तव्य मानते हैं तो अपने पत्रके माध्यमसे ऐसा करनेकी कृपा करें।
किन्तु मान लें कि इन पत्रोंको २ आना और सवा आनाके वर्तमान मूल्यपर बेचनेसे कोई लाभ नहीं हो रहा है और न कोई लाभ होनेकी सम्भावना है तो क्या आप किसी भी प्रकार प्रेसके लाभका कुछ अंश इन पत्रोंमें लगाकर उनको सस्ता नहीं बना सकते?

पत्रमें जो बातें लिखी है मैंने उनके सम्बन्धमें व्यवस्थापकसे सलाह की है और वे तथा मैं इस नतीजेपर पहुँचे है कि निम्न कारणोंसे इनके मूल्यमें बिना कोई खतरा उठाये कमी नहीं की जा सकती।

१. मुनाफा एक अनिश्चित मद है।
२. मूल्यमें कमी करनेसे ग्राहक संख्यापर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
३. जन-साधारणका पाठकोंके रूपमें कोई महत्व नहीं है, क्योंकि वे पढ़ नहीं पाते।

४. यद्यपि पत्रोंका सम्पादन मैं करता हूँ, इससे ग्राहकोंकी संख्या कुछ बढ़ी है, किन्तु वह वृद्धि कोई खास नहीं है। पत्र पहले की तरह कदापि लोकप्रिय नहीं रहे। शायद इसका कारण यह हो कि अब लोगोंका जोश कुछ ठंडा पड़ रहा है। ‘यंग इंडिया’ और ‘हिन्दी नवजीवन’ का खर्च अभीतक पूरा नहीं निकलता और यदि ‘यंग इंडिया’ के अंग्रेजी जाननेवाले पाठक और ‘हिन्दी नवजीवन’ के हिन्दी जानने- वाले पाठक स्वयं इन पत्रोंका खर्च निकालने और ग्राहक बढ़ाने में दिलचस्पी न लें तो जल्दी ही इनको बन्द कर देनेका प्रश्न उठ सकता है।