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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फैले। मैं मान लूँगा कि मैं हार गया। मैं झुक जाऊँगा और झुककर सबको एकत्र करनेकी आशा रखूँगा। ऐसा करते हुए जब भारत अपनी विस्मृत दशासे जगकर अपनी आजादी हासिल करेगा तब मानव-जातिको उससे सबक मिलेगा। मैं इससे ज्यादा क्या कहूँ? मैं तो ईश्वरसे इतनी ही प्रार्थना करता हूँ कि मुझे सत्पथ दिखा, यदि मेरे अन्दर राग, द्वेष या क्रोधका कुछ भी अंश छिपा हुआ रह गया हो तो उसे दूर कर और मुझे ऐसा कार्यक्रम सुझा, जिसमें सब लोग उत्साह और उमंगसे सम्मिलित हों।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-९-१९२४

४०. भाषण: बम्बई प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकमें[१]

३१ अगस्त, १९२४

स्थिति ऐसी है कि जिन लोगोंको चरखेकी स्वराज्य प्राप्त करने की शक्तिके सम्बन्धमें शंका हो उन्हें प्रस्ताव पास होनेतक उसका विरोध करना चाहिए। किन्तु यदि वे बहुमतसे हार जायें तो उन्हें बहुमतके प्रस्तावका आदर करना चाहिए। लेकिन जिनका सिद्धान्त चरखा न चलाना ही हो उन्हें तो कांग्रेससे बाहर निकल जाना चाहिए; इसी में न्याय है, विनय है और विवेक है।

अन्य सब शंकाओंका उत्तर में आज नहीं दूँगा। मैं सलाह-मशविरा कर रहा हूँ और आपको उनका उत्तर थोड़े समयमें मिल जायेगा। मेरी घड़ी बहत तेज चलती है, आपकी धीमी चलती है। लेकिन मझे तो आपको साथ लेकर दौडना है और मुझे आप स्वराज्यवादी या अपरिवर्तनवादी जो भी कहें, मैं तो कार्यदक्ष हूँ। इसलिए मैं कोई-न-कोई रास्ता अवश्य निकालूँगा। जबतक वह न निकले तबतक आप लोगोंको मेरी सलाह है कि आप सब सिर नवाकर सूत कातें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-९-१९२४
  1. कताईके सम्बन्धमें अहमदाबादमें पास किये गये प्रस्तावकी आलोचनाके उत्तर में।