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४१. पत्र: वाइकोम सत्याग्रह आश्रमके मन्त्रीको[१]

[१ सितम्बर, १९२४][२]

प्रिय मित्रो,

आपको तथा अन्य सभी मित्रोंको सूतकी बहुमूल्य भेंट के लिए धन्यवाद देता हूँ। ईश्वर आपके प्रयत्नोंको सफल बनाये। आप अपने प्रयत्नमें मृत्यु-पर्यन्त लगे रहें।[३]

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ४-९-१९२४

४२. पत्र: शुएब कुरैशीको

१ सितम्बर, १९२४

प्रिय शुएब,

ऐसी उम्मीद किये था कि कल तुम्हारे साथ सावकाश लम्बी बातचीत करूँगा, लेकिन यह सम्भव नहीं हुआ।

कृष्टोदासका ध्यान रखना और तुम दोनोंके कल्याणकी चिन्ता ईश्वर करेगा।

रेल-किराया तुम मत देना; उसका भुगतान मेरे हिसाबमें से होने देना।

हाँ, इसका खयाल रखना कि तुम्हें किसी भी रूपमें हैदराबादके अधिकारियोंका प्रतिरोध नहीं करना है। हम जो जाँच करना चाह रहे हैं वह सार्वजनिक किस्मकी जाँच नहीं है। असलमें तो जाँच शब्दके मान्य अर्थमें वह जाँच ही नहीं है। उसका मतलब इतना ही है कि तुम मेरे लिए कुछ जानकारी इकट्ठी कर रहे हो।

जो भी दल तुम्हें अपनसे मिलने दे, तुम उन सबसे मिलना--दोनों दलोंके अधिकारियों और वकीलोंसे भी। अगर फोटो ला सको तो अवश्य ले आना।

हरएक चीज देखने-सुननेके बाद, मेरा सुझाव है कि तुम्हारे मनपर जो छाप पड़ी हो उसके अनुसार तुम दोनों अलग-अलग अपने विवरण लिख डालना, फिर उनकी तुलना करना और तब दोनोंको स्वीकार्य विवरण या वक्तव्य तैयार करना।

कृष्टोदासका कहना है कि तुम कुछ खिन्न और उदास हो। ऐसा क्यों? ईश्वरमें तो तुम्हारा गहरा विश्वास है। वह तो अपनी सृष्टि के तुच्छतम प्राणीकी भी चिन्ता

  1. आश्रमवासियों द्वारा भेजे गये सूतकी प्राप्ति सूचित करते हुए।
  2. एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया द्वारा इसी तारीखको प्रकाशित किया गया था।
  3. वाइकोम सत्याग्रहमें।