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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करता है। तब फिर उन्हें क्यों चिन्ता करनी चाहिए? क्या यह बस नहीं है कि हम अपनी समझ के अनुसार उसकी इच्छाका पालन करें और निश्चिन्त रहें।

तुम्हारा,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ५६०० ) की फोटो - नकलसे।


४३. पत्र: बम्बईके यातायात महाप्रबन्धकको

[१ सितम्बर, १९२४ या उसके पश्चात्]

महोदय,

अजमेरके यातायात प्रबन्धकने मुझे [१] सूचित किया है कि मेरा पिछले महीनेकी १८ तारीखका लिखा हुआ पत्र वहाँसे आपके कार्यालयको भेज दिया गया है। यदि जल्दी उत्तर भेजें तो आभार मानूँगा।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०१२०) की फोटो नकल से।

४४. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

बम्बई
२ सितम्बर [१९२४]

प्रिय मोतीलालजी,

सुबह तड़के ही प्रार्थनोपरान्त मैं आपको पुनः पत्र लिख रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरा लम्बा पत्र आपको मिल गया होगा। आपसे एक तारकी[२] उम्मीद कर रहा हूँ। अपना वह पत्र मैं दोबारा पढ़कर सुधार नहीं सका था। उसके व्यक्तिगत हिस्से में मैंने क्या कहा था, शब्दशः याद नहीं है। श्रीमती नायडू इसे नहीं ही पढ़ पाईं, क्योंकि पत्र उनके पढ़ सकनेसे पहले ही डाकमें डाल दिया गया था। लेकिन कामकाज से सम्बन्धित अंशको, जिसकी प्रति मेरे पास मौजूद है, उन्होंने तथा अन्य साथियोंने भी पढ़ा है।

पिछले पत्रकी तरह यह पत्र भी मैं जवाहरलालकी सिफारिश करनेके लिए ही लिख रहा हूँ। भारतमें बहुत अकेलापन महसूस करनेवाले जिन नौजवानोंसे मिलनेका मुझे मौका मिला है, वह उनमें से एक है। आपके मानसिक रूपसे उसका त्याग कर

  1. २३ अगस्त, १९२४ के पत्रमें।
  2. देखिए " तार : मोतीलाल नेहरूको ", २-९-१९२४ था उसके पश्चात्को पाद-टिप्पणी।