पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६९
पत्र: एक मित्रको

देनेके खयालसे मुझे बहुत दुःख होता है। शारीरिक त्यागकी बातको तो मैं असम्भव मानता है। कहनेकी जरूरत नहीं कि जब मंजर अली और मैं यरवदा जेलमें आप लोगोंके विषयमें प्रायः बातचीत हुआ करती थी। एक बार उन्होंने यह कहा भी था कि अगर कोई एक वस्तु ऐसी है जिसके लिए आपका जीवन और वस्तुओंसे ज्यादा समर्पित है तो वह जवाहरलाल है। उनका यह कथन बहुत सत्य जान पड़ा। मैं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी तरहसे इस अद्भुत प्रेम सम्बन्धमें बाधक नहीं बनना चाहता।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०१४६) की फोटो-नकलसे।

४५. पत्र: एक मित्रको

[२ सितम्बर, १९२४][१]

परमप्रिय मित्र,

यद्यपि हम एक-दूसरेको कभी मुश्किलसे ही लिखते हैं और इसी तरह मुश्किलसे ही कभी मिलते हैं, फिर भी ऊपर आपके लिए मैंने अपने सम्बोधनमें जो-कुछ कहा है वह तो आप है ही।

देशमें इस समय जो घरेल झगड़ा चल रहा है उससे मैं अब बहत परेशान हो गया हूँ। इसीलिए मैंने हारकर पूरी तरह आत्म-समर्पण कर दिया है। अगर मुझे कांग्रेसमें रहने के लिए सभी पुराने मित्रोंसे अलग होना पड़ेगा, तब तो मैं कांग्रेसमें नहीं रहना चाहता। मैंने श्रीमती बेसेंटसे बात की है। पण्डित मोतीलालजीसे मेरा पत्रव्यवहार चल रहा है तथा अब मैं आपको लिख रहा हूँ। क्या एक चरखेको ही आप बराबर बाधा मानते रहेंगे? क्या आप भारतके गरीबों तथा पद-दलित लोगोंके हितके लिए खद्दर और चरखा नहीं अपनायेंगे? अगर आप सिद्धान्ततः इसके विरुद्ध न हों तो मैं चाहता हूँ कि आप मेरी बातपर गम्भीरतासे विचार करें।

आशा है कि आप सकुशल हैं। उत्तर साबरमतीके पतेपर भेजें।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०१४६ ए) की फोटो-नकलसे।

  1. ऐसा लगता है कि यह पत्र पिछले पत्रके साथ ही लिखा गया था। दोनों एक ही कागजपर टाइप हुए हैं। लेकिन जिस व्यक्तिको यह पत्र लिखा गया, उसका नाम नहीं दिया गया है।