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४८. भाषण: कांग्रेस कमेटीकी बैठक में[१]

[२ सितम्बर, १९२४][२]

माण्डवीमें कांग्रेस कमेटीकी बैठकम बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि कांग्रेसके दो दलोंको आपस में लड़ना नहीं चाहिए बल्कि एक हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा, मैं स्वयं लड़ना नहीं चाहता और अपनी हार स्वीकार करता हूँ। यह भारतका दुर्भाग्य है कि हमारे बीच ऐसे मतभेद व्याप्त हैं जिनसे देशकी प्रगतिमें रुकावट पड़ रही है। मैंने पण्डित मोतीलाल नेहरूको लिख दिया है कि मैं लड़ने नहीं जा रहा हूँ, बल्कि मैंने तो हथियार डाल दिये हैं। वक्ताने सभी लोगोंसे सूत कातने, हिन्दू-मुसलमानोंके बीच एकता स्थापित करने तथा छुआछूतको दूर करनेकी अपील करते हुए कहा कि इन्हींपर हमारी स्वाधीनता निर्भर करती है। बम्बईके शिक्षित जनोंके लिए स्वराज्य खद्दरके बिना भले सम्भव हो, परन्तु खेतिहरोंके लिए स्वराज्य खद्दरके बिना सम्भव नहीं हो सकता। रुईके निर्यातका अर्थ है उन [ खेतिहरों ] की बरबादी। मसजिद और मन्दिरोंके नामपर हिन्दू और मुसलमानोंका आपसमें लड़ना कायरता है, न कि बहादुरी। श्रोताओंसे उन्होंने ईश्वरके नामपर सूत कातने तथा देशकी सेवा करनेकी अपील की।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ४-९-१९२४

४९. तार: मोतीलाल नेहरूको[३]

[ २ सितम्बर, १९२४ या उसके पश्चात् ]

धन्यवाद; आपके तारसे बड़ी राहत मिली।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०१४७) की फोटो-नकलसे।

  1. यह बैठक बम्बई में हुई थी।
  2. बॉम्बे सीक्रेट एक्स्ट्रैक्टससे।
  3. यह तार मोतीलालजीके २ सितम्बरके इस तारके उत्तरमें था: "आपका पत्र मिला। जवाहर के बारेमें पूरी कहानी बिलकुल झूठी है। स्कूल जानेपर अनावश्यक आग्रह नहीं किया बल्कि इच्छा व्यक्त की, जिसे जवाहरने अपना कर्त्तव्य समझकर शिरोधार्थ किया। स्कूलका सरकारसे कोई सम्बन्ध नहीं। जवाहरको वहाँ मिलनेवाली शिक्षाकी अनुपयोगितापर आपत्ति थी। मैं तो केवल इतना ही चाहता था कि शिक्षा जैसी भी हो, इन्दुको उसकी उम्र के बच्चोंका साथ मिले। अन्त में जवाहर सहमत हो गया,..।"