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५०. पत्र: सन्तोक गांधीको

बुधवार, भाद्रपद सुदी ४ [३ सितम्बर, १९२४][१]

चि० सन्तोक[२]

तुम्हें पत्र लिखनेका यह कैसा दुःखद अवसर है! मैंने आज राजकोटके पतेसे तुम्हारे नाम जो तार दिया है वह तुम्हें मिल गया होगा और तुम सब आश्रममें आ गये होगे। तुमने आश्रममें रहकर जो ज्ञान लाभ किया है उसका उपयोग करना। मुझे उम्मीद है कि तुमने आँखोंसे एक भी आँसू न गिराया होगा। सारा संसार वियोगके दुःखको अनुभव करता है। लेकिन तुम उसे दबाना और मृत्युकी यथार्थताको समझना। जिसने गीताके द्वितीय अध्यायके अर्थको जान लिया है वह, जो अनिवार्य है उसपर शोक नहीं करता। हमें ऐसे अवसरोंपर शास्त्रोंका उपयोग अवश्य करना चाहिए।

शिवलालभाईके साथ मेरे निजी सम्बन्ध थे। मैं उन्हें अपना बुजुर्ग मानता था और अनेक बातोंमें उन्हींकी सलाह लिया करता था। हमारा यह सम्बन्ध अन्त तक बना रहा। यह सम्बन्ध प्रकट नहीं होता था। क्योंकि सलाह-मशविरा करनेके अवसर ही बहुत कम होते थे। लेकिन जब-जब हमारी आँखें चार होती तब-तब हम एक-दूसरेके मनोगत भावोंको जान लेते थे। मैंने सदा यह अनुभव किया है कि वे साहूकारोंमें एक ईमानदार साहूकार थे। हमें उनके पुण्योंका स्मरण करके उनका अनुकरण करना चाहिए।

जमनादास रुखीके[३]बारेमें क्या खबर लाया है? मुझे रुखीकी चिन्ता सदैव बनी रहती है। लेकिन जबतक जमनादासकी ओरसे कोई समाचार नहीं मिलता तबतक मैं दूसरी कोई बात नहीं सोचता। रुखीने कहलाया है कि उसे पत्र लिखना नहीं आता, यह ठीक नहीं है। रुखीको मुझे पत्र अवश्य लिखना चाहिए और अपने विचार खुलकर बताने चाहिए।

मैंने राजकोटमें किसीको अलगसे पत्र नहीं लिखा है क्योंकि वहाँ मैं किसीको नहीं जानता। यदि कोई वहाँ अब भी है तो उसे इस पत्रकी एक प्रतिलिपि भेज देना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१९९) की नकलसे।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

  1. पत्रमें सन्तोक गांधीके पिताको मृत्युका उल्लेख है। उनकी मृत्यु १९२४ में हुई थी।
  2. मगनलाल गांधीकी पत्नी।
  3. सन्तोककी लड़की।