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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गया। इसमें श्रोताओंने मेरी मदद की। उन्होंने फुसफुसाकर मेरी बातका समर्थन किया और रोक-टोक करनेवालोंको क्षमा याचनाकी सलाह दी और तब रोक-टोक करनेवालोंने बहादुरीके साथ खड़े होकर हाथ जोड़कर क्षमा याचना की। यह एक ऐसा दृश्य था, जिसे मैं आसानीसे नहीं भूल सकता। अपना भाषण फिरसे प्रारम्भ करते हुए तथा रोक-टोक करनेवालोंको क्षमा याचनाके लिए धन्यवाद देते हुए मैं यह कहे बिना न रह सका कि स्वराज्य-प्राप्तिके साधनके रूपमें विधान परिषदोंमें ओजस्वी भाषणों या बहस-मुबाहिसों तथा मतदानोंकी अपेक्षा इस प्रकारका सच्चा और सज्जनतापूर्ण आचरण कहीं अधिक कारगर है। श्रोतृसमूहमें शामिल ये पश्चात्ताप करनेवाले लोग अपनी भूलके लिए निर्भीकतापूर्वक खुले-आम पश्चात्ताप प्रकट करके स्वराज्यको निकटतर ले आये हैं।

इस घटनाने, जो दुःखद भी थी और सुखद भी, मेरे भाषणके लिए एक विशेष पृष्ठभूमि तैयार कर दी। उस दिन मैंने जो कुछ कहा सब इसी पृष्ठ-भूमिमें कहा और मेरे भाषणमें एक अप्रत्याशित शालीनता आ गई।

मलाबारके विषयमें बोलते हुए इसी पृष्ठ-भूमिके सहारे मुझे इतने दिनों बाद श्री देवधरकी समाज-सेवाकी अपरिमित क्षमताकी प्रशंसा करनेका अवसर मिला और मैं लोगोंसे यह कह सका: यद्यपि राजनीतिके क्षेत्रमें हम एक-दूसरेसे दो ध्रुवोंकी तरह बिलकुल दूर-दूर दिखाई देते हैं, फिर भी उनके व्यक्तिगत चरित्र, कर्तव्यनिष्ठा और आत्म-त्यागके प्रति मेरे सम्मान-भावमें कोई अन्तर नहीं पड़ता। इसके बाद मैंने चरखेकी चर्चा करते हुए उन्हें समझाया कि यह देशके गरीबोंके साथ आपके एकात्म-भावका सच्चा प्रतीक है। सिर्फ मुँहसे किसी बातपर हामी भर देना काफी नहीं है, और न सिर्फ हृदयसे उनके प्रति दयाका अनुभव करनेसे ही कुछ बननेवाला है। हम चाहते हैं कि गरीब लोग यह महसूस करें कि अगर वे हमारे लिए मेहनत करते हैं तो हम भी उनके लिए चरखा चलाते हैं। आधा पेट खाकर जीनेवाले ये करोड़ों लोग आज घोर निराशाकी स्थितिमें पड़े हुए हैं। उनका न अपने-आपपर विश्वास है और न हमपर। उनके मनमें पस्तीका यह भाव आ गया है कि उन्हें तो इसी तरह भूखकी पीड़ा झेलते हुए तिल-तिलकर मरना है, उनके लिए और कोई रास्ता नहीं है। उन्हें धर्मार्थ दिये गये दानोंपर जीनेकी ऐसी लत पड़ गई है कि वे काम करनेको लगभग तैयार ही नहीं है। यदि हम चाहते हैं कि ये करोड़ों दीन-हीन लोग ईमानदारी और सम्मानके साथ चार पैसे कमा सकें तो इसके लिए हम उन्हें जो एकमात्र साधन दे सकते हैं वह तो यह छोटा-सा सुन्दर चरखा है, जिसे कमजोरसे-कमजोर आदमी भी चला सकता है। इन करोड़ों लोगोंको भिखमंगोंके जड़ और निःसार जीवनको छोड़कर सुन्दर और सहज श्रमका जीवन अंगीकार करनेका प्रोत्साहन देनेका एकमात्र कारगर तरीका यही है कि हम स्वयं चरखा चलाकर उन्हें भी चरखेको अपनानेकी प्रेरणा दें। गीतामें कहा है कि जैसा आचरण श्रेष्ठ जन करते हैं, वैसा ही आचरण सामान्य जन भी करते हैं।[१]

  1. पयदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। ३-२१