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अविस्मरणीय


चरखेकी चर्चाके बाद मैंने कहा कि बहुत-से भाइयोंने ऐसी आशा व्यक्त की है कि आज हमारा राष्ट्रीय जीवन जिस विकट स्थितिमें पड़ गया है मैं उससे निकलनेका रास्ता दिखाऊँगा। मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूँ और कोई रास्ता ढूँढ़ निकालनेकी कोशिश कर रहा हूँ। पण्डित मोतीलालजीसे इस सम्बन्धमें पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ। लेकिन, मैं सत्याग्रहके अलावा और किसी बातका सुझाव नहीं दे सकता। अबतक लोग इसके उग्र पक्ष--सविनय अवज्ञा तथा असहयोग--को ही जानते रहे हैं। लेकिन इसका एक सौम्य पक्ष भी है और यही इसका स्थायी पक्ष है। अब तो जनताके सामने इसके सौम्य पक्षको ही रखना है, वह चाहे जो भी रूप धारण करे। हम लोग काफी लड़-झगड़ चुके और अकसर बहुत छोटी-छोटी बातोंपर ही लड़े-झगड़े हैं। हम प्रमादमें पड़कर आपसमें विभक्त हो रहे हैं। कोई कारण नहीं कि हम कोई ऐसा कार्यक्रम न तय कर पायें, जिसपर सबकी सहमति हो। कुछ बातें तो ऐसी होनी ही चाहिए, जिनपर हम सभी एकमत हो सकें और जिनको अंजाम देने के लिए हम एक ही झण्डे के नीचे एकत्र हो सकें। चरखा, साम्प्रदायिक एकता और हिन्दुओं द्वारा अस्पृश्यता निवारण--ये सब ऐसी बातें हैं जिनपर शायद सभी एक हो सकते हैं। मैं श्रीमती बेसेंटसे मिल चुका हूँ और नम्रतापूर्वक उनके सामने अपना विचार प्रस्तुत कर चुका हूँ। मैं दूसरे नेताओंसे भी इसी तरह मिलकर अपनी बात समझाऊँगा। मैं किसी भी कारण कांग्रेसको विरोधी पक्षोंमें नहीं बँटने दूँगा और यदि लोगोंमें झगड़नेकी इच्छा देखूँगा तो उसमें कोई भाग तो नहीं ही लूँगा, साथ ही चुपचाप पीछे जा बैठूँगा और ऐसे अशोभनीय संघर्षसे दूर ही रहूँगा। इसलिए जो भी कार्यक्रम हो, वह ऐसा हो जो बहुमतके द्वारा नहीं बल्कि अनौपचारिक रूपसे परस्पर बातचीत करके सबकी सहमतिसे तय किया गया हो। अगर जरूरी हो जाये तो सभी पक्षोंकी सहमति हो जानेपर मत लिये जा सकते हैं। यदि मैं यह पाऊँगा कि ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है जिसे कार्यान्वित करने में मैं शामिल हो सकता हूँ तो मैं विघ्न डालनेवालोंका नेतृत्व करने के बजाय कांग्रेससे खुशी-खुशी बिलकुल अलग हो जाऊँगा। सत्याग्रहका सबसे सौम्य पक्ष सम्पूर्ण आत्म-समर्पण है। सौम्य सत्याग्रहमें अगर कोई विरोध किया जा सकता है तो ऐसे सिद्धान्तको लेकर ही, जिसे सम्बन्धित व्यक्तिने अपने आचरणमें उतारा हो और अपने जीवनमें गूँथ लिया हो। मैने श्रोताओंको बताया कि सत्याग्रह-शास्त्रका--अगर इसे शास्त्र कहा जा सके तो--विकास मैंने पारिवारिक जीवनके सुदीर्घ अनुभवके आधारपर किया है। इसके उग्र पक्षका प्रयोग मैने स्वयं अपनी पत्नी, पुत्रों और उन भाइयोंपर, जो बहुत पहले दिवंगत हो चुके हैं किया है। इसके कारण मुझे उन सबकी नाराजगी और अलगाव भी सहना पड़ा। लेकिन, मैंने यह सब उनके प्रति गहरे प्रेमसे ही प्रेरित होकर किया था। मैं मानता हूँ कि मुझमें ईश्वरकी सृष्टिके दूसरे समस्त प्राणियोंसे भी उतना ही स्नेह करनेकी क्षमता है जितना कि मैं अपने प्रियसे-प्रिय परिजनोंसे कर सकता हूँ। प्रेमकी पीड़ा कभी-कभी प्रेम-पात्रपर गहरे निशान छोड़ जाती है, लेकिन प्रेमीके हृदयमें तो वह उससे भी कहीं अधिक गहरे निशान छोड़ती है। अंग्रेजोंके प्रति मेरे मनमें