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५२. बम्बईका खादी-भण्डार

अखिल भारतीय खादी बोर्डने खादी-भण्डारको समुचित लिखा-पढ़ीके बाद लगभग पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया है। अबतक इसका प्रबन्ध श्री विठ्ठलभाई जेराजाणी करते थे। इसके पीछे विचार यह है कि विभिन्न प्रान्तोंकी अतिरिक्त खादीके वितरणकी ठीक व्यवस्था की जा सके और बम्बई जैसे नगरोंकी आवश्यकता पूरी करनेके लिए खादी मुहैया की जा सके। अभीतक निजी एजेन्सीके जरिये ऐसा नहीं किया जा सकता था। यह काम तो कोई अखिल भारतीय संस्थान ही कर सकता है। कीमतें नियन्त्रित निर्धारित करनेका काम अब बोर्डके हाथमें रहेगा, ताकि खरीददारोंको यथासम्भव सस्तेसे-सस्ते दामोंपर खादी मिल सके। भण्डारके पूरे हिसाब किताबकी जाँच-पड़ताल भी बोर्ड के ही जिम्मे रहेगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-९-१९२४

५३. बनारसमें कताई

प्रोफेसर रामदास गौड़ने एक दिलचस्प रिपोर्ट भेजी है जिसमें बताया गया है कि उन्होंने किस प्रकार बनारस नगरपालिकाके स्कूलोंके बच्चोंमें चरखेका प्रवेश कराया। उन्होंने ४० पुराने चरखे और धुनकियाँ आदि खरीदीं। फिर उन्होंने १३ शिक्षकोंको सूत कातना सिखाया। उन शिक्षकोंने दूसरे साथी शिक्षकोंको सिखाया। इस तरह एक महीनेसे कुछ अधिक समयमें १७५ शिक्षक कताईके खासे उस्ताद बन गये। गौड़जीकी पत्नी और पुत्रीने इसमें उनकी सहायता की। अब गौड़जी अभिमानके साथ कहते हैं:

हर पाठशालामें कोई चरखा-मास्टर अलगसे रखा जाता तो कमसे-कम १०,००० रुपये सालाना खर्च उठाना पड़ता। . . . कोई ५-६ सप्ताहतक मैंने अपना सिर्फ ४ घंटेका समय मौजूदा शिक्षकोंको कातना सिखाने में लगाया और यह समस्या हल हो गई।

आगे वे कहते हैं:

अब ऐसा कोई शिक्षक नहीं रह गया जो कातना या धुनना न जानता हो और आगे किसी भी ऐसी स्त्री या पुरुषको शिक्षककी जगह नहीं दी जायेगी जो धुनना और कातना न जानता हो।

गौड़जी अपनी आगेकी योजना इस तरह बयान करते हैं:

जब यह कठिनाई हल हो गई तब मैंने बोर्डमें एक ब्योरेवार तजवीज पेश की--अपर प्राइमरी २६ स्कूलोंमें ३५० चरखे दाखिल किये जायें, कमसे-