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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं। कुछ सूत पर्याप्त सावधानीसे नहीं काता गया है, जब कि कुछ ठीक तरहसे कता हुआ है, उसकी गुंडियाँ भी ठीक ढँगसे बनाई गई हैं और उसपर छिड़काव भी किया गया है।

बिहार

बिहारने तो सूतकी किस्म और मात्रा दोनों ही दृष्टियोंसे ऐसा परिणाम भी नहीं दिखाया है जिसे कामचलाऊ माना जा सके। सबसे ऊपर बाबू राजेन्द्रप्रसाद आते हैं, जिन्होंने बढ़िया कता और अच्छी तरह लच्छियोंमें बँधा हुआ १०,१४८ गज ८ नम्बरका सूत भेजा है। लेकिन उनके अलावा किसीने ऐसा काम नहीं किया है जिससे वह उनके मुकाबले सही मानीमें द्वितीय स्थानका भी पात्र हो।

बंगाल

बंगालने तो सबसे प्रशंसनीय कार्य किया है। खादी प्रतिष्ठानके १०७ सदस्योंने ऐसा सूत भेजा है जिससे प्रकट होता है कि वह कताईमें माहिर लोगोंके हाथका कमाल है। लेकिन गुडियोंमें कुछ और एकरूपता होनी चाहिए, लच्छियाँ अच्छी तरह बँधी हुई होनी चाहिए और सूतपर छिड़काव भी होना चाहिए।

१८ वर्षकी एक महिलाने आसानीसे प्रथम स्थान प्राप्त किया है और वह पूरे भारतवर्ष में प्रथम आई है। उसका नाम श्रीमती अपर्णादेवी है। उसने ७६ नम्बरका ७,००० गज बढ़िया बटवाला और एक-सा सूत भेजा है।

पर्चियाँ बिलकुल ठीक है।

मध्य प्रान्त (हिन्दी)

कुल मिलाकर इसने अच्छा काम नहीं किया; तो भी कुछ अच्छे नमूने हैं:

१. देवी सुभद्राकुमारी २००० ३० अच्छा
२. उमरावसिंह चौहान २०४८ २२ सामान्य

मध्य प्रान्त (मराठी)

अधिकांश सूत २० से ज्यादा नम्बरका नहीं है, लेकिन उसको देखनेसे यह जरूर प्रकट होता है कि वह सधे हुए हाथोंसे काता गया है। कुछ सुत इससे भी कम नम्बरका है; लेकिन अच्छा और एक-सा कता हुआ है। पर्चियाँ ठीकसे नहीं लगाई गई हैं--यहाँतक कि कुछ अच्छे कातनेवालोंके नाम भी नहीं जाने जा सकते।

गुजरात

सूतकी मात्राको दृष्टिसे इसका स्थान पहला है और इसके भेजे सूतको देखनेसे ज्ञात होता है कि यह बहुत ही कुशल हाथोंसे कता हुआ है। कच्छ और काठियावाड़ने भी जो मोटा सूत कातने के लिए प्रसिद्ध हैं, अच्छा सूत भेजा है। लेकिन बाजी तो दरबार साहब गोपालदास देसाई, ढसावाले ले गये है जिन्होंने औसतन् ४५ नम्बरका ५,०७४ गज अच्छा सूत भेजा है। उनके द्वारा भेजी गुंडियोंमें से एकमें ७२ नम्बरका