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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भाषण किया था। कारण और कार्यके अटल नियमका सनातन रूपमें अमल होता हुआ बताया गया है, जिसका कोई अपवाद नहीं। इस चमत्कारी काव्यके लिए यह दावा किया जाता है कि उसमें ऐसी कोई चीज नहीं छोड़ी गई है जो उपयोगी और अच्छी हो और जो दूसरे ग्रन्थों में मिल सके। यह महाकाव्य इस दावेको सही सिद्ध करता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-९-१९२४

५८. भाषण: पूनाकी सार्वजनिक सभामें[१]

४ सितम्बर, १९२४

आप पूछते हैं कि [भारतीय] मिलोंका कपड़ा पहननेसे बहिष्कार क्यों नहीं हो सकता? यह प्रश्न भारी अज्ञान-जनित है। मिलका कपड़ा बहिष्कारके लिए काफी है ही नहीं। बंग-भंगके समय मिलवालोंने बंगालको किस तरह धोखा दिया, इसकी शिकायत बंगाल आज भी करता है। उनके अनुभवसे हमें यह शिक्षा लेनी चाहिए कि मिलके कपड़ेसे बहिष्कार असम्भव है। इसलिए हमें केवल खादीका ही प्रचार करना चाहिए। यह बात स्पष्ट है कि कांग्रेसकी हदमें मिलके कपड़ेको बिलकुल स्थान नहीं मिलना चाहिए।

श्रद्धाका[२] अर्थ है आत्म-विश्वास और आत्म-विश्वासकेमानी हैं, ईश्वरपर विश्वास। जब चारों ओर काले बादल दिखाई देते हों, किनारा कहीं नजर न आता हो और ऐसा मालूम होता हो कि बस अब डूबे, तब भी जिसे यह विश्वास होता है कि मैं हरगिज न डूबूँगा, उसे कहते हैं श्रद्धावान्! द्रौपदीका वस्त्रहरण हो रहा था, उसकी रक्षा करने में युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सब असमर्थ थे। तब भी द्रौपदीने श्रद्धा नहीं छोड़ी। वह कृष्ण-कृष्ण पुकारती रही; उसे इस बातपर श्रद्धा थी कि जबतक कृष्ण हैं तबतक किसीकी क्या मजाल कि मेरा वस्त्रहरण कर सके। आपमें ऐसी श्रद्धा है? यदि आपके अन्दर ऐसी श्रद्धा हो तो आप अकेले पूनाके ही बलपर स्वराज्य ले सकते हैं। जो श्रद्धावान् होता है वह ईश्वरके साथ सौदा नहीं करता, करार नहीं करता। हरिश्चन्द्रने कोई सौदा नहीं किया था। वे अपनी पत्नीका गला काटने के लिए भी तैयार हो गये थे।

जो लोग खादीकी बातको पागलपन समझते हैं उन्हें सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा :

  1. यह श्री एस॰ एम॰ परांजपेकी अध्यक्षतामें रे मार्केटमें हुई थी और इसमें लगभग दस हजार लोग उपस्थित थे।
  2. गांधीजीने इससे पहले चिपलूणकरकी मूर्तिका अनावरण करते हुए कहा था, "महाराष्ट्रमें त्याग है किन्तु श्रद्धा नहीं"। उन्होंने यहाँ इसी बातको स्पष्ट किया है।