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५९. भाषण : तिलक महाविद्यालय, पूनाके
दीक्षान्त समारोहमें

४ सितम्बर, १९२४

तुम जो शिक्षा ग्रहण कर रहे हो उसका उद्देश्य स्वराज्य लेना है। मैं जो गुजरातमें कुलपति बनकर बैठा हूँ, वह भी स्वराज्यके लिए लड़नेवाले सैनिककी हैसियतसे और इस मकसदसे बैठा हूँ कि विद्यार्थियोंको स्वराज्यका सैनिक बनाकर निकालूँ। मैं ४ अगस्त, १९१४[१] के दिन विलायत पहुँचा था। वहाँ मैंने क्या देखा? जैसे-जैसे लड़ाई बढ़ती गई, वैसे-वैसे तमाम कानूनकी शिक्षा देनेवाली संस्थाएँ बन्द होती गई। ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिजमें भी पढ़ाईका काम बहुत-कुछ बन्द हो गया। उन्होंने शिक्षाको लड़ाईके मुकाबले गौण स्थान दिया। और दें भी क्यों नहीं। शिक्षाका फल ही यह है कि विद्यार्थी श्रेष्ठ नागरिक बनें, उत्तम देशसेवक बनें—और देश, समाज एवं गृहस्थाश्रमको सुशोभित करें।

अबसे चौबीस वर्ष पूर्व दक्षिण आफ्रिकामें भी मैंने यही दृश्य देखा था। वहाँ कॉलेजोंके छात्र सेना और रेडक्रॉस सेवादलमें सम्मिलित हो रहे थे। जवान लड़के और लड़कियाँ सभी अपने-अपने कॉलेजोंको छोड़कर ऐसे ही कामोंमें लग रहे थे। मैं तो काला आदमी था। मैंने गोरे वकीलों और बैरिस्टरोंको अदालतें छोड़-छोड़कर लड़ाईमें जाते देखा। मैं जब अदालतोंमें गया और उन्हें खाली देखा तो मुझे शर्म मालूम हुई। मेरे जीमें आया कि मैं भी इसी काममें लग जाऊँ। जब देशपर कोई संकट आता है तब यही काम करना पड़ता है। यदि तुम इस बातको समझो तो तुम्हारे सम्मुख मुझ जैसे अविद्वान्का खड़ा होना सार्थक हो, अन्यथा मुझे इस समारोहका अध्यक्ष बनाना तो मेरी हँसी उड़ाने-जैसा है।

कोई नया आया हुआ अंग्रेज सरकारी संस्थाओंको देखकर तुम्हारी संस्था देखने आये तो वह यहाँ क्या देखनेकी आशा रखेगा? क्या वह तुम्हारे मकान देखेगा, विद्वान् शिक्षक देखेगा, तुम्हें अंग्रेजीमें बोलते हुए सुनने की उम्मीद रखेगा? नहीं, वह यहाँ कोई नई तस्वीर देखनेकी आशा रखेगा। दूसरी सब संस्थाओंमें उसे कताई देखनेको नहीं मिली होगी; यहाँ वह कताई और बुनाई देखना चाहेगा। वह तुम्हारे आँगनमें कपास पैदा होती देखना चाहेगा। तुम्हारा सूत देखना चाहेगा और यदि वह अच्छा सूत देखेगा तो मनमें कहेगा कि मैचेस्टरपर आफत आ रही है। मोटा सूत देखेगा तो कहेगा कि मैचेस्टरको चिन्ता नहीं। वह तुमको साहब बना हुआ देखनेकी उम्मीद नहीं रखेगा; वह तुम्हें गरीबों-जैसा देखनेकी आशा रखेगा। तुम्हें अपनी भाषामें ही काम-काज चलाते हुए देखनेकी आशा रखेगा। जनरल बोथा इंग्लैंड

  1. मूलमें ६ अगस्त है जो स्पष्टतः भूल है; देखिए, खण्ड १२, पृष्ठ ५१४।