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पत्र: चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

इसलिए सबसे अच्छा यही रहेगा कि चुपचाप बैठकर बेहतर मौकेका इन्तजार किया जाये।...[१]अमेठीके बारेमें अत्यन्त मुस्तैदीसे भेजी गई तुम्हारी रिपोर्ट मिल गई है। उसको पढ़ते हुए दुःख होता है। समझमें नहीं आता कि क्या करूँ। मैंने शुएब और कृष्टोदासको निजी तौरपर सचाईका पता लगाने गुलबर्गा भी भेजा है। जितनी जल्दी हो सके, तुम नाभा चले जाओ। हयात और मोअज्जमको अपने साथ ले जा सकते हो। उनको जगहकी जानकारी होनी चाहिए। चूँकि एम० आगे कोई प्रगति नहीं कर पाया है, इसलिए मेरी हलचलके बारे में कुछ भी कह सकना मुश्किल है। मैं कमसे-कम सोमवारतक यही हूँ।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

६९. पत्र: चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

६ सितम्बर, १९२४

प्रियवर राजगोपालाचारी,

मेरे विचारोंमें तेजीसे परिवर्तन हो रहे हैं। पता नहीं आप उनपर ठीक-ठीक लक्ष्य कर रहे हैं या नहीं। मुझे तो दिनके उजालेकी तरह स्पष्ट नजर आ रहा है कि हमारे कार्यकर्त्ताओं में जो बुराई घर कर गई है, हमें उसका सीधा प्रतिरोध नहीं करना चाहिए। हमें पूर्ण रूपसे सत्ताका परित्याग कर देना चाहिए। अगर अपने उद्देश्यमें हमारी आस्था है और हमारा उद्देश्य सचमुच अच्छा है तो हमें सफलता मिलनी ही चाहिए। यदि इससे आन्दोलनको फिलहाल कुछ नुकसान भी पहुँचे, तो उसका खतरा हमें उठाना चाहिए। बहुमतके बलपर कोई भी निर्णय नहीं किया जाना चाहिए। हमें तबतक समर्पण करते जाना चाहिए जबतक कि हमारे सिद्धान्तपर ही आँच न आ जाये। इसी दृष्टिसे मैं चरखा, अस्पृश्यता और हिन्दू-मुसलमान एकताका कार्यक्रम पेश कर रहा हूँ।

हाँ, कताई-सम्बन्धी अपने प्रस्तावमें दण्डकी एक धारा जुड़वानेकी आपकी कोशिशको लेकर यह क्या शोर-गुल मचा हुआ है? आपको कठिनाइयोंमें देखकर, मेरा हृदय आपके प्रति सहानुभूतिसे भर उठता है। अगर स्थानीय नियन्त्रण बनाये रखने में इतनी सारी शक्ति खर्च करनी पड़ती है, तो उसकी चिन्ता ही छोड़ दीजिए। क्या अब सारा झगड़ा शान्त हो गया है?

  1. यहाँ साधन-सूत्रमें कुछ पक्तियाँ छोड़ दी गई हैं।