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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या आपने देवधर द्वारा स्थापित सहायता समितिकी कार्यप्रणालीका अध्ययन किया है? क्या आप उनके साथ सम्मिलित हो सकते हैं? उनका कार्य किस प्रकारका है? मैं तो आपको यही सलाह दूँगा कि यदि सम्भव हो तो एक ही गैर-सरकारी समिति बनवाइए। चारों ओरसे पैसा आ रहा है। क्या मैं सारी राशि आपको भेज दूँ? दक्षिण कनाराका क्या होगा? विभिन्न केन्द्रोंकी क्या स्थिति रहेगी? यहाँ वस्त्रोंका बड़ा ढेर लग गया है। कृपया ब्योरेवार हिदायत दें। मैं यहाँ कमसे-कम सोमवार तक तो हूँ ही। लेकिन हो सकता है कि यहाँ कमसे-कम हफ्ते-भर रहूँ।

आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

७०. पत्र: जमनालाल बजाजको

[६ सितम्बर, १९२४][१]

चि० जमनालाल,

तुम्हारा तार मिल गया और पत्र भी। बम्बई, पूना और सूरतकी यात्रामें लिखनेको एक क्षणका भी समय नहीं मिला। आज सुबह आश्रम पहुँचा।

तुमको चोट लगी, इससे मुझे बिलकुल दु:ख नहीं हुआ। मैं तो मानता हूँ कि हम-जैसे बहुतोंको कदाचित् अपना बलिदान देना पड़े। जहर इतना ज्यादा व्याप्त हो गया है और अप्रामाणिकता इतनी ज्यादा फैल गई है कि कुछ शुद्ध व्यक्तियोंका बलिदान हुए बिना इस आपत्तिसे हमारा छुटकारा नहीं हो सकता। हो सके तो झगड़ेकी जड़का पता लगाना। क्या कुछ ऐसे समझदार हिन्दू या मुसलमान नहीं है जो समझें और झगड़े के कारणोंको दूर करें?

मेरे निश्चय तुमने समझ लिये होंगे। बेलगाँवमें मतदानसे किसी भी महत्त्वपूर्ण बातका फैसला न करनेका मैंने निश्चय किया है। झगड़े इतने बढ़ गये है कि फिलहाल तो हमको सत्याग्रहका प्रचण्ड स्वरूप बन्द ही रखना चाहिए। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो हमारा ही नाश हो जायेगा। एक भी बात सही रूपमें नहीं समझी जाती। सबकुछका अनर्थ; चारों ओर अविश्वास! इस समय तो हम खुद अपनी जगह कायम रहें और दूसरे जो-कुछ करते हैं उसके साक्षी रहें।

  1. गांधीजी आश्रम ६ सितम्वरको पहुँचे थे।