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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कपड़ेको हवा ज्यादा मिलेगी और वह तुरन्त सूख जायेगा। दूसरा सुझाव खादीकी टोपीको धोने के बारेमें है। उसे धोते समय मरोड़नेसे उसपर सिलवटें पड़ जाती हैं और कभी-कभी तो सीवन भी खुल जाती है। लेकिन यदि उसे बिना मरोड़े निचोड़ा जाये और उसकी दो या तीन तहें करके हाथों में दबाकर सुखा दिया जाये तो उसमें कोई सिलवट न आयेगी और वह देखने में सुन्दर लगेगी। यह सच है कि इससे पानी अच्छी तरहसे नहीं निकल सकता, लेकिन टोपी तो तीन दिन पहनी जा सकती है। अतएव उतने समयमें धोई हुई टोपी सुखाई जा सकती है। यदि उसे दोनों हाथोंसे दबाने के बजाय दो चिकनी पट्टियोंके बीच दबाया जाये तो सारा पानी भी निकल जायेगा और सूखनेपर टोपी भी काफी सुन्दर रह सकेगी। सफेद खादी पहननेवाले लोगोंको भी मैली खादी कतई नहीं पहननी चाहिए। कपड़े धोने की आदत पड़ने के बाद मनुष्यको कपड़े धोना अच्छा लगता है। इसमें समय भी नहीं लगता और आनन्द आता है सो अलग। यह स्पष्ट है कि सफेद कपड़े कई बार धोये जाने चाहिए। काली बंडी पहननेवाला गरीब आदमी धोबीका खर्च नहीं उठा सकता। उसे अपने कपड़े आप धोनेकी आदत डालनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-९-१९२४

७२. सूतकी जाँच

अखिल भारतीय खादी बोर्डने प्राप्त सूतकी जो परीक्षा की है, उसके परिणाम जानने योग्य हैं, इसलिए मैं उन्हें नीचे दे रहा हूँ।[१]

प्रार्थना है कि प्रत्येक प्रान्त अगले महीने अपने सदस्यों तथा अन्य लोगोंके सूतके रजिस्टर नम्बर सही-सही लिख भेजें।

कुछ प्रान्तोंने अहमदाबाद स्टेशनके पतेसे अपने पार्सल भेजे हैं; इससे समय और पैसा व्यर्थ बरबाद हआ है। सब पार्सल साबरमती स्टेशनके पतेसे भेजे जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त सब पार्सलोंपर 'किराया देय' लिखकर उसकी रकम टिकटोंके रूपमें अथवा मनीआर्डरसे भिजवाना नहीं भूलना चाहिए।

प्रथम पुरस्कार एक १८ वर्षीया बंगाली बाला लिये जा रही है, यह बात हम सबके लिए गर्वके योग्य है। भले ही कुछ लोगोंको यह बात न रुचे और भले ही कुछ लोग इसे तुच्छ समझें, लेकिन मेरे लिए तो यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। गुजरातमें दरबार साहब गोपालदास प्रथम आयेंगे, यह बात मैंने स्वप्न में भी नहीं सोची थी। मैं उन्हें बधाई देता हूँ। पण्डित जवाहरलाल और उनकी पत्नीके बारेमें भी ठीक यही बात हुई है। संयुक्त प्रान्तमें इन दोनों तथा श्री पुरुषोत्तमदास टण्डनके नाम विशेष रूपसे चमक रहे हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पण्डित जवाहरलालने कामका बोझ

  1. यहाँ नहीं दिये गये हैं; देखिए "कसौटीपर", ४-९-१९२४।