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दादाभाई नौरोजीकी जयन्ती

बहुत ज्यादा होने के बावजूद ४,००० गज सूत भेजा है। यह बात अन्य कार्यकर्त्ताओंको प्रोत्साहन देनेवाली है।

कुल संख्या और गणको देखते हए गजरातका प्रथम आना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। आश्चर्यकी बात तो यह है कि गुजरातसे भी उसकी आबादीके अनुपातसे बहुत कम नाम आये हैं। जहाँ सिखानेवाले बहुत अधिक हैं और जहाँ कातनेकी कलाके विकासपर खूब ध्यान दिया गया है वहाँ तो आज हजारों स्त्री-पुरुषोंको सूत कातना चाहिए।

यह तो रहा एक पक्ष।

गुजरातकी संख्या सबसे ज्यादा है, इससे जो सन्तोष होता है वह है दूसरा पक्ष। जहाँ जितना ज्यादा काम हुआ है वहाँ उतना ही ज्यादा सूत काता गया है। गुजरातमें ज्यादा काम हुआ है इससे वहाँ ज्यादा सूत काता गया है। कातनेवालोंकी कम संख्यासे पता चलता है कि देशमें लोग अभीतक कातनेके महत्त्वको समझ नहीं सके हैं और यह कला जितनी लोकप्रिय होनी चाहिए, अभी उतनी लोकप्रिय नहीं।

अगले महीनेके परिणामोंसे इस सम्बन्धमें अधिक प्रकाश पड़ेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-९-१९२४

७३. दादाभाई नौरोजीकी जयन्ती

भारतके पितामह दादाभाईकी जयन्ती ४ सितम्बरको थी, लेकिन मेरी सुविधाका खयाल करके राष्ट्रीय महिला परिषद्ने यह जयन्ती ३० अगस्तको मनाई, क्योंकि ४ सितम्बरको मुझे पूना जाना था। दादाभाईका जीवन एक ऋषिका-सा जीवन था। मेरे मनमें उनकी अनेक पावन स्मृतियाँ हैं। जिन महापुरुषोंने मेरे जीवनको प्रभावित किया है, उनमें से भारतके ये पितामह भी एक हैं और उनके जीवनसे मुझे आज भी प्रेरणा मिलती है। मैंने बहनोंको जो संस्मरण सुनाये थे, उनको मैं पाठकोंके सम्मुख प्रस्तुत करने योग्य मानता हूँ।

मुझे पहले-पहल सन् १८८८ में दादाभाईके दर्शन हुए थे। मेरे पिताके एक मित्रने मुझे उनके नाम परिचय-पत्र दिया था। यह जानने योग्य है कि इस मित्रकी दादाभाईसे कोई जान-पहचान न थी, लेकिन उन्होंने ऐसा मान लिया था कि दादाभाईजैसे साधु पुरुषको कोई भी पत्र लिख सकता है। मैंने जाकर देखा कि दादाभाई इंग्लैंडमें सब विद्यार्थियोंके सम्पर्कमें आते थे। वे उनके नेता थे और उनके सभी सभा-समारोहोंमें भाग लेते थे। मैंने तबसे लेकर अन्ततक उनका जीवन एक ही धारामें बहता देखा। मैं दक्षिण आफ्रिकामें बीस वर्षतक रहा और इस अरसेमें मेरे और दादाभाईके बीच सैकड़ों ही पत्रोंका आदान-प्रदान हुआ होगा। पत्रका उत्तर देनेकी उनकी नियमितताने मुझे तो चकित कर दिया था। मेरे पत्र तो टाइप किये होते थे, लेकिन मुझे उनका एक भी पत्र टाइप किया हुआ मिला हो, यह मुझे याद नहीं आता। वे अपने सब पत्र हाथसे लिखते थे; इतना ही नहीं, बल्कि बादमें