पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१११
बम्बईकी उदारता

ही किसीको साहस होता था, उस समय दादाभाईने सरकारकी कड़ी-से-कड़ी आलोचना की थी और निडर होकर ब्रिटिश राज्यकी त्रुटियाँ बताई थीं। जबतक हिन्दस्तानका इस दुनियामें अस्तित्व रहेगा तबतक हिन्दुस्तानकी जनता उन्हें प्रेमपूर्वक याद रखेगी, इस बारे में मुझे तनिक भी शंका नहीं है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-९-१९२४

७४. बम्बईकी उदारता

मैं जानता हूँ कि बम्बईमें कई बुराइयाँ हैं और गन्दगी भी बहुत है। इस शहरके लोगोंमें धनका लोभ बहुत अधिक है। तिसपर भी मैंने अन्य स्थानोंकी अपेक्षा बम्बईके वातावरणमें हमेशा उदारता और भोलेपनका अनुभव अधिक किया है। यह कहा जाता है कि मैं अन्य शहरोंकी अपेक्षा बम्बईको ज्यादा अच्छी तरह जानता हूँ, इसी कारण मुझे ऐसा अनुभव होता है। लेकिन यह कथन सही नहीं है। भारतके चाहे किसी भी भागमें चन्दा उगाहा जाये, उसमें अधिकतर बम्बई ही सबसे आगे रहता है। मलाबारके लोगोंकी सहायताके लिए भी बम्बईसे ही अधिक रुपया मिल रहा है। पारसी राजनीतिक संघकी ओरसे जो सभा आयोजित की गई थी, उसमें केवल टिकटोंसे ही चार हजारसे अधिक रुपये मिल गये थे और इतनी ही रकम सभाके अन्तमें जो चन्दा इकट्ठा किया गया, उससे प्राप्त होनेकी आशा है। चन्दा देनेवाले भाई-बहनोंने इस बातको ध्यानमें रखकर पैसा दिया है कि चन्देकी राशि अपेक्षित रकमसे ज्यादा ही हो, कम नहीं। आजकल बम्बईके व्यापारमें बहुत ज्यादा गिरावट है तथापि बम्बईके लोग अब भी उसी तरह उदारतापूर्वक पैसा दे रहे हैं।

इसका क्या कारण है? मेरी तो मान्यता यह है कि यह पारसियोंकी दानशीलताका प्रभाव है। पाठक कहेंगे कि जिनके प्रति मेरा पक्षपात होता है, मैं हमेशा उन्हींकी ओर झुक जाता हूँ। लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता। पारसियोंकी दानशीलता जगत्प्रसिद्ध है। यह देखने में आया है कि अन्य स्थानोंपर रहनेवाले हिन्दू और मुसलमान उतना पैसा नहीं देते, जितना बम्बईके हिन्दू और मुसलमान देते हैं। लेकिन मैं यह बात मानता हूँ कि पारसी सज्जनोंने सार्वजनिक कार्योंमें पैसा देनेकी जो प्रथा चलाई है उसका अन्य कौमोंने भी अनुकरण किया है। श्री डोंडेने सब कौमोंके दानके आँकड़ोंकी तुलना करके बता दिया है कि पारसी कौम दानशीलतामें संसारकी सभी कौमोंसे बढ़कर है।

लेकिन मेरा उद्देश्य तो बम्बईके नागरिकोंकी दानशीलताके कारणोंको बताकर उनसे और भी अधिक दान लेना है। मैं तो बम्बईके नागरिकोंसे सूतके दानकी आशा रखता हूँ। पारसी, हिन्दू और मुसलमान पैसा देते हैं तो इससे क्या हुआ? क्या वे आध घंटेका श्रम नहीं देंगे? क्या बम्बईके भाई और बहन अपने अन्य कार्य रोककर ईश्वरके नामपर आधा घंटा सूत कातकर देशको अर्पण न करेंगे? सूतका दान देनेमें पहल करनेके उद्देश्यसे पारसी भाई दूसरे लोगोंके समक्ष आदर्श पेश करेंगे? एक मनुष्य किसी गरीबको