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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मदद करने के लिए श्रम करे और दूसरा उसकी मदद करने के लिए अपनी बचतमें से धन दे, इन दोनोंमें से भगवान्के पुण्यके खातेमें किसके दानको ऊँचा स्थान दिया जायेगा? [ऊँचा स्थान सूतके दानको ही दिया जायेगा], क्योंकि सूत तो हिन्दुस्तानके गरीबोंकी खातिर काता जायेगा। उसकी जो खादी बनेगी उसे बेचा जायेगा। लेकिन उस श्रमका वास्तविक उद्देश्य तो गरीबोंके सम्मुख उदाहरण रखना है। मेरी माँग है कि बम्बईकी पचरंगी जनता इस उद्देश्यको पूरा करे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-९-१९२४

७५. दो प्राचीन पुस्तकें

भाई करसनदास चितालियाने मुझे दो उत्तम पुरानी पुस्तकें दी हैं। ये पुस्तकें उन्हें एक पारसी बहनसे मिली हैं। दोनों पुस्तकें सन् १८२८ की हैं और लिथोमें छपी हैं। इनपर चमड़ेकी जिल्दें चढी हैं तथा उनके ऊपरके पृष्ठोंपर सुनहरे अक्षरों में लिखा है, "दीनशा भीखाजीको: मेजर जनरल सर माल्कम द्वारा समर्पित।" ये अंग्रेज सज्जन उस समय शिक्षा बोर्डके प्रमुख थे। पुस्तकोंमें अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति और बहीखाता विषय दिये गये हैं। अंग्रेजीसे कप्तान जॉर्ज जर्विस इंजीनियरने जगन्नाथ 'शास्त्री क्रमवन्त [?] की सहायतासे इनका गुजरातीमें अनुवाद किया है।' ये पुस्तकें पहले जमानेके अंग्रेजोंकी सेवावृत्ति और उदारताका नमूना हैं। इनकी लिपि देवनागरी है। सम्भव है, ये पुस्तकें देवनागरीको एक सर्वसामान्य लिपिके रूप में प्रतिष्ठित करने के उद्देश्यसे ही लिखी गई हों। इनके अक्षर मोतीके समान है और अपार अंकोंसे युक्त पहाड़े भी बहुत सुघड़तासे दिये गये हैं। यदि ऐसा कहें कि इन पुस्तकोंमें हम शिक्षाके इतिहासका पहला अध्याय पढ़ सकते हैं, तो इसमें कोई अत्युक्ति न होगी। उस कालकी पारिभाषिक शब्दावली आज भी लगभग उसी रूपमें कायम है। इतने वर्षों की लम्बी अवधि भी उसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकी है। चूँकि ये महाराष्ट्रीय पण्डितकी सहायतासे लिखी गई हैं इसलिए इनमें "शून्य" के स्थानपर "पूज्य" और "जवाब" के स्थान "जबाप" शब्दोंका प्रयोग देखनेमें आता है।

आजके छापाखानों और रोटरी मशीनोंके युगमें, प्राचीन कालके लोगोंने कितना अधिक परिश्रम किया होगा इसकी कल्पनातक नहीं की जा सकती। ऐसी पुस्तकें उनके परिश्रमकी साक्षी देती हैं।

ये पुस्तकें पूरातत्त्व मन्दिरके[१] संग्रहमें भेजी जायेंगी। यदि किसी अन्य भाई या बहनके पास ऐसी पुस्तकें हों और वे उनका कोई उपयोग न करते हों तो मेरी उनसे प्रार्थना है कि वे उन पुस्तकोंको पुरातत्त्व मन्दिरमें भेज दें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-९-१९२४
  1. गुजरात विद्यापीठका एक विभाग।