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७६. पत्र: कनिकाके राजा साहबको

साबरमती
७ सितम्बर, १९२४

प्रिय राजा साहब,

मैं अब आपको दो विवरणोंकी प्रतिलिपियाँ भेज रहा हूँ। ये दोनों विवरण मेरे सचिवने मेरे लिए तैयार किये हैं। ये विवरण मेरे पास मौजूद कागजातके आधारपर तैयार किये गये हैं। आप देखेंगे कि अगर इनमें दिये गये तथ्य ठीक हैं तो यह जरूरी है कि कोई आदमी खुद जाकर उनकी जाँच करे। मेरा विचार तो श्री एन्ड्रयूज या राजेन्द्रबाबू अथवा पण्डित जवाहरलालको आपके राज्यमें भेजनेका है। क्या आप इसे पसन्द करेंगे? मैं बहुत चाहता था कि खुद ही वहाँ आऊँ, लेकिन इन दिनों मेरे पास काम बहुत ज्यादा है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

कनिकाके राजा साहब

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

७७. पत्र: मुहम्मद अलीको

८ सितम्बर, १९२४

प्रिय भाई,

इस समय सोमवारकी सुबहके पाँच बजे हैं। मैंने स्याहीसे लिखना शुरू तो किया है, पर स्याहीकी कलमपर हाथ ठीकसे जम नहीं पाया है और मैं तो आपसे परिहार्य रुकावटको दूर करके भी बात करना चाहता हूँ।

अभी कल ही मेरी समझमें यह आया कि आप क्या चाहते हैं। इतना याद रखें कि दो प्रेसोंका सफलतापूर्वक संचालन कर चुकनेके बाद भी उसके ब्योरेके बारेमें मेरी जानकारी नहींके बराबर है। मैं अभीतक नवजीवन कार्यालयमें गया ही नहीं हूँ। मुझे कभी पता ही नहीं रहा कि दिल्लीसे क्या लाया गया है और क्या नहीं। मैं तो यही समझ रहा था कि जो ला रहा हूँ वह मेरा ही है। खैर, अब मैं जो भेज रहा हूँ उसे आप अपना समझें। मेरा जो-कुछ है, वह आपका है, और स्वामी[१] भी उसमें शामिल

२५-८
  1. स्वामी आनन्दानन्द, प्रबन्धक, नवजीवन प्रेस।