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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। लेकिन जहाँ भी वह चूके, या आपको उसमें कोई कमी दिखाई दे, वहाँ आपको मेरी सहायता लेनी चाहिए। जो-कुछ वह कर सकता है, वह तो मैं नहीं कर सकता, लेकिन हाँ, अगर धनसे इस गँवाये हुए समयकी कमी पूरी हो सकती हो, तो मैं जैसे भी हो धन जुटा दूँगा। स्वामी कहता है कि वह इससे पहले आपको मशीनें भेजनेका इन्तजाम नहीं कर सकता था। मुझे उसकी बातपर यकीन है। आप कुछ समयके लिए 'कॉमरेड'[१]और 'हमदर्द'[२] दोनोंको किसी दूसरे प्रेसमें छपवानेका इन्तजाम क्यों नहीं कर लेते? और जो घाटा हो उसे पूरा करनेके लिए आप मुझसे कह सकते हैं?

स्वामीका कहना है कि प्रेसको ठीक ढंगसे जमानेमें समय लगेगा। वह कहता है कि उसने कभी ऐसा तो समझा ही नहीं था कि हर चीज उसे खुद ही जमानी पड़ेगी। वह और मैं भी यही समझते थे कि उसकी जरूरत सिर्फ मशीनोंके लिए ही है। उसका कहना है कि वह यहाँ सारे फर्नीचरकी ढुलाईके लिए तैयार नहीं था। उस समय न तो उसे और न उसके एजेंटको ही सारी आवश्यक जानकारी थी। जिस एजेंटको सचमुच माल सौंपा गया था, प्रेसके बारेमें उसकी जानकारी नहींके बराबर थी।

लेकिन सवाल यह नहीं है कि 'क' या 'ख'ने क्या समझा, बल्कि यह है कि आपको जरूरत किस चीजकी है और मैं क्या कर सकता हूँ। मैं जब दिल्लीमें था तब भी मेरा यह खयाल नहीं था कि इसमें जो देर हुई है वह केवल मेरी ओरसे हुई देरीके कारण ही हुई है। मेरा खयाल था कि दिल्लीमें मशीनें लग जानेके बाद भी आपको कई चीजें और करनी पड़ेंगी; तभी हम काम शुरू कर सकेंगे।

अब आप स्वामीसे जी-भरकर काम लें। आखिर वह उन लोगोंमें से है, जो मेरे ज्यादासे-ज्यादा करीब हैं। उसकी नाकामयाबीका मतलब है मेरी नाकामयाबी। जो आदमी दूसरोंको परख नहीं सकता, उसे असफल ही कह्ना होगा, फिर चाहे उसका हृदय बिलकुल कुन्दन-जैसा और इरादा नेकसे-नेक ही क्यों न हो। ऐसे आदमीको तो फिर लोगों और चीजोंसे कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए। इसीलिए मैं हमेशासे कहता आया हूँ कि जिस कसौटीपर मेरे सबसे निकटके साथी खरे उतरें उसके आधारपर आप मेरा भी मूल्यांकन करें। आप, स्वामी, महादेव, हयात, अशफाक, मोअज्जम, देवदास, कृष्णदास, शुएब मेरे ऐसे ही साथी हैं। इतना ही काफी नहीं है कि मैं आपके साथ अच्छी तरह निभा लूँ, स्वामी, महादेव, देवदास वगैरहको भी तो निभाना चाहिए। अगर ये लोग ऐसा नहीं कर सकते तो उनको मेरे सार्वजनिक जीवनसे उसी तरह अलग हट जाना चाहिए जैसे बा कमसे-कम फिलहाल हट गई है। यही लोग तो मेरे साधन हैं, जिनके जरिये मैं काम करता हूँ--ठीक उसी तरह जैसे आप हयात, मोअज्जम वगैरहके जरिये करते हैं।

इसलिए में स्वामीको भेज रहा हूँ, ताकि आप दोनों एक-दूसरे के करीब आ सकें और एक-दूसरेको ज्यादा अच्छी तरह समझ सकें। में स्वराज्य और एकता प्राप्त करनेके

  1. और
  2. मुहम्मद अली द्वारा सम्पादित क्रमशः अंग्रेजी और उर्दू पत्र।