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पत्र: सतीशचन्द्र मुखर्जीको

लिए इन निजी ताल्लुकातको ठीक-ठीक शक्ल देना हजारों सार्वजनिक दस्तावेजोंसे ज्यादा अहम मानता हूँ।

दिली मुहब्बतके साथ,

आपका,मो० क० गांधी

मुहम्मद अली

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

७८. पत्र: सतीशचन्द्र मुखर्जीको

८ सितम्बर, १९२४

प्रिय सतीश बाबू,

आपका तार पढ़कर हार्दिक दुःख हुआ। मैं आपको सान्त्वनापूर्ण उत्तर भेज रहा हूँ।

कृष्टोदासको न किसीने हटाया है और न कोई हटाना ही चाहता है। मैं अभी भी उसके बिना काम नहीं चला सकता। पिछली बार कृष्टोदास मेरे साथ नहीं गया, क्योंकि हम दोनों इसी नतीजेपर पहुँचे कि ऐसा करना खुद उसके लिए भी और उद्देश्यके हितमें भी सर्वोत्तम है। वह उन चारों व्यक्तियोंमें सबसे अधिक बुद्धिमान है, जो मेरी वैयक्तिक सेवा तथा सचिवोंका काम कर रहे हैं। महादेव, देवदास और प्यारेलाल उसे बुद्धि और तपस्यामें अपनेसे बढ़कर मानते हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि कृष्टोदासके दिमागमें ऐसा खयाल कैसे आया कि उनमें से कोई उसे उखाड़ फेंकनेकी कभी सोच सकता है। मुझे यात्राओंके दौरान चारोंकी जरूरत नहीं पड़ती। कमसे-कम एकको तो काम-काज देखनेके लिए पीछे रहना ही चाहिए और इस तरह या तो महादेवको या देवदासको ही आश्रममें छोड़ा जा सकता है, अन्य किसी कारणसे नहीं तो कमसे कम इसलिए कि प्यारेलाल और कृष्टोदास दोनोंमें से कोई भी 'नवजीवन' और गुजरातीमें होनेवाले पत्र-व्यवहारका काम नहीं देख सकता। इसलिए कृष्टोदासको हमेशा मेरे साथ ही रहना है। वह गुलबर्गा इसलिए गया है कि शुएबको सिर्फ वही स्वीकार्य था। मैं अगर जोर देता तो शुएब अपने साथ महादेवको ले जा सकता था। लेकिन मैं जानता हूँ कि वह बड़ा भावुक है। मैं चाहता था कि वह अधिकसे-अधिक अनुकूल परिस्थितियोंमें वहाँ जाये। फिर जब मैंने देखा कि महादेवका नाम सुझानेपर भी शुएबने कृष्टोदासके लिए ही कहा तो मैंने बेहिचक उसकी बात मान ली। कृष्टोदास भी राजी था। उसकी और शुएबकी खूब पटती है। इसलिए आप कृष्टोदासके बारेमें चिन्ता मत कीजिए। वह मेरे साथ रहेगा। और